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बसना : जर्जर पुलिया नहीं बनने से ग्रामीणों का सब्र टूटा — आज एनएच-53 पर कर सकते हैं चक्का जाम

दो साल पहले स्वीकृत राशि के बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं

टेंडर प्रक्रिया के नाम पर चल रही टालमटोल , ग्रामीण बोले अब नहीं करेंगे इंतज़ार

सी डी बघेल | बसना ब्लॉक के ग्राम पंचायत कुड़ेकेल के अंतर्गत आने वाले कुड़ेकेल, जमड़ी, पोटापारा, मुडपहार, परसकोल, बिछिया सहित आसपास के गांवों के ग्रामीणों का सब्र अब जवाब दे चुका है। सुरंगी नाले पर बनी जर्जर पुलिया के निर्माण की मांग 6 वर्षों से अधूरी है। शासन से दो साल पहले राशि स्वीकृत होने के बावजूद निर्माण कार्य शुरू न होने पर ग्रामीणों ने 15 नवंबर को राष्ट्रीय राजमार्ग-53 पर चक्का जाम करने की चेतावनी दी है।

ग्रामीणों का कहना है कि सितंबर 2023 में तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार ने उच्च स्तरीय पुल निर्माण के लिए 489.78 लाख रुपये स्वीकृत किए थे। लेकिन अब तक केवल टेंडर प्रक्रिया का बहाना बनाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ग्रामीणों ने रोष जताते हुए कहा कि “अगर दो साल में टेंडर नहीं हो पा रहा है तो पुल बनने में कितने साल लगेंगे, इसका आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।”

सुरंगी नाले पर बना यह पुल अब पूरी तरह खतरनाक स्थिति में है। प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से पुल के दोनों ओर ‘आवागमन प्रतिबंधित’ करने का बोर्ड 2021 से ही लगा रखा है, लेकिन गांव से बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता न होने के कारण लोग उसी मार्ग से आने-जाने को विवश हैं। कई हादसे इस पुल पर पहले ही हो चुके हैं — एक युवक की मौत हो चुकी है जबकि एक अन्य गंभीर रूप से घायल होकर महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहा। परसों ही एक कार चालक जब पुल से गुजर रहा था। तब उसकी कार नाले में पलट गई। दुर्घटना में कार चालक तो किसी तरह बच गया लेकिन कार क्षतिग्रस्त हो गया। स्कूली छात्र-छात्राएँ, महिलाएँ और किसान रोजाना इसी पुल को पार करते हैं। बरसात के दिनों में तो यह मार्ग पूरी तरह बंद हो जाता है और गांवों का संपर्क बसना विकासखंड से कट जाता है।

दिसंबर 2022 में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तत्कालीन विधायक देवेन्द्र बहादुर सिंह की मांग पर कुड़ेकेल पुल के निर्माण की घोषणा की थी। इसके बाद राज्यपाल के आदेशानुसार लोक निर्माण विभाग रायपुर ने आवश्यक प्रक्रिया पूरी की और 12 सितंबर 2023 को 489.78 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई। परंतु लगभग दो वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो टेंडर प्रक्रिया पूरी हुई, न कार्य प्रारंभ हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन केवल कागज़ी औपचारिकताओं में उलझा है, जबकि उन्हें हर दिन जान जोखिम में डालकर उन्हें आवागमन करना पड़ता है।

यह पुल वर्ष 2005-06 में बनाया गया था, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि ठेकेदार ने घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया, जिससे कुछ ही वर्षों में पुल जर्जर होने लगा। 2008-09 में पुल में दरारें आ गईं और धीरे-धीरे पुल का एक हिस्सा नीचे धंस गया। तब से अब तक न तो इसकी मरम्मत हुई और न ही नया निर्माण शुरू हुआ। वर्ष 2021 में पुल पर आवागमन रोकने का बोर्ड लगाया गया, लेकिन किसी भी वैकल्पिक मार्ग का निर्माण नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में ग्रामीणों द्वारा बनाए गए डायवर्सन मार्ग पूरी तरह बह जाता है, जिससे गांवों तक चारपहिया वाहन पहुंचना असंभव हो जाता है।

ग्राम कुड़ेकेल के सरपंच भरत लाल डड़सेना ने बताया कि बरसात के दिनों में स्थिति भयावह हो जाती है। कच्चे रास्ते में कीचड़ और दलदल से उन्हें कभी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर किसी गर्भवती महिला या बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना पड़े तब 4 किलोमीटर दूर अस्पताल जाने के बजाय कच्चे मार्ग से ट्रैक्टर के सहारे अन्य गांवों से होते हुए 10 से 12 किलोमीटर दूर बसना अस्पताल ले जाना पड़ता है। गांव के अन्य निवासी रामरतन पटेल, चंद्रमणी साव, प्रेम सिंह जगत, पदमन सिदार आदि ने कहा कि पुल के एक हिस्से के नीचे धंस जाने से सड़क असमतल हो गई है, जिससे वाहन पलटने की घटनाएं आम हो गई हैं। कई ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं, फिर भी प्रशासन मौन है।

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ग्रामीणों ने पुल निर्माण नहीं किए जाने पर मतदान बहिष्कार का निर्णय लिया था। तब स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन ने पुल निर्माण की राशि स्वीकृति का हवाला देकर उन्हें समझाया, जिसके बाद ग्रामीणों ने बहिष्कार का निर्णय स्थगित कर दिया। लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी काम शुरू न होने पर अब लोगों में गहरा आक्रोश है। उनका कहना है चुनाव बहिष्कार तो टाल दिया गया है लेकिन अब उन्हें मजबूरन अपनी मांग को लेकर चक्का जाम करना पड़ेगा।

बसना क्षेत्र के कई गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार विकास के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि हमारे बच्चे टूटी पुलिया पार कर स्कूल जाते हैं और किसान जान जोखिम में डालकर खेतों तक पहुंचते हैं। ग्रामीणों ने बताया था कि प्रशासन को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया था। जो 15 नवंबर को पूर्ण हो जाएगा। अभी भी टेंडर प्रक्रिया का हवाला देखा टालमटोल किया जा रहा है इसलिए अब वे 15 नवंबर 2025 को एनएच-53 पर चक्का जाम कर उग्र आंदोलन करेंगे। ग्रामवासियों की मांग है कि जर्जर पुलिया को तत्काल ध्वस्त कर नया पुल बनाया जाए। जब तक नया पुल न बने, तब तक डायवर्सन मार्ग का निर्माण कर सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित किया जाए ।


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