
रायगढ़ उप संचालक कृषि-ललित मोहन भगत ने कृषि विभाग के कर्मचारियों का वेतन रोकने का दिया आदेश...!
अऋणी किसानों से जबरजस्ती फसल बीमा कराने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों पर डाला दबाव...
कम्पनी के टारगेट पूर्ति नही होने पर प्रसार प्रचार करने वाले कर्मचारियों के तनख्वाह रोकने का दिया आदेश..!
कोरोना काल मे तनख्वाह रोककर कर्मचारियों के परिवार को रक्षाबंधन, ईद नही मनाने देने का इरादा!
छतीसगढ़ किसानों का प्रदेश है, यहां प्रदेश गठन के बाद किसानों एवमं ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों ने मिलकर छत्तीसगढ़ को देश के मुख्य पटल पर अंकित करने में कोई कसर नही छोड़ा है।
प्रदेश के मुखिया कई बार देश मे अग्रणी रहते हुवे कृषि कर्मण पुरुष्कार प्राप्त करते आ रहे हैं।
एक ओर शासन प्रशासन कृषि, सोसाइटी, एवमं बैंक के माध्यम से kcc बनवाने एवमं ऋण लेने हेतु प्रोत्साहित करती है। जिसमे कृषि विभाग गाँव मे कैम्प लगाकर किसानों को kcc लेने एवमं सोसाइटी के माध्यम से खाद बीज लेने हेतु प्रोत्साहित करती है, जिसे किसान बढ़चढ़कर अपनाते हैं एवमं खाद बीज का उठाव करके भली भांति खेती करके लिए गए ऋण को चुकाते हैं।
जो किसान सोसाइटी के माध्यम से खाद बीज का उठाव करते हैं उन किसानों का प्रशासन स्वतः ही फसल बीमा हेतु पंजीयन कर लिया जाता है। जिससे किसानों का 1 हैक्टर में लगभग 640 रुपये काट लिया जाता है।
जो किसान सोसाइटी में पंजीयन नही कराते या kcc नही लेते उन्हें अऋणी किसान कहा जाता है। इन्ही अऋणी किसानों को फसल बीमा कराने हेतु शासन बैंक सोसाइटी को निर्देशित करता है जिसमे कृषि विभाग का काम फसल बीमा हेतु प्रोत्साहित करने एवम प्रचार प्रसार करना होता है।
कृषि विभाग के प्रत्येक कर्मचारियों को थोपा गया 200 किसानों के बीमा का टार्गेट:-
जिस विभाग का कार्य किसानों तक फसल बीमा का प्रचार- प्रसार करना होता है उनको बिगत कई वर्षों से फसल बीमा कराने का टारगेट दिया जाता रहा है। इस बार भी उपसंचालक ललित मोहन ने पहले 50 किसानों का अनिवार्य बीमा का आदेश दिया था..जिसे अचानक बढ़ाकर 200 किसानों का करवाने का अचानक आदेश पारित कर दिया।
सोचने वाली बात यह है कि जब प्रदेश के हर किसान सस्ते ब्याज पर मिलने वाले kcc जो उनके कई काम आता है जिसमे वो पंजीयन करा चुके हैं , उनमे अतिरिक्त 200 किसानों को सिर्फ कृषि विभाग के कर्मचारी कैसे बीमा करवाएं?
बीमा आग्रह की वस्तु होती है न कि जबरजस्ती थोपने की
जब कभी पैसा मिलता ही नही तो क्यों करवाएं बीमा-किसान
किसानों के पास जब बीमा के लिए आग्रह किया जाता है तो किसानों का साफ कहना है कि पिछले कई वर्षों से फसल में वर्षा की कमी या अधिकता से नुकसान होता है परंतु कभी हमे या आसपास के गाँव मे किसी को इसका फायदा मिला ही नही तो हम क्यों करवाएं? पिछले विगत वर्षों में हमे नुकसान के बाद भी कोई राहत नही मिली।
तो ऐसे में कोई कर्मचारी कब तक उच्च अधिकारियों के आदेश के पालन को सिरोधार्य करके कर्तव्य निर्वहन कर सकेगे।
ठेका में दिया जाता है बीमा कम्पनी को फसल बीमा का दायित्व:-
फसल बीमा के लिए प्रत्येक वर्ष ठेका दिया जाता है इस वर्ष यह ठेका एग्रिकल्चर इन्सुरेंस कम्पनी AIC को दिया गया है। पूरी राशि कम्पनी के के खाते में जाता है लोगों की माने तो बैंक एवं उच्चाधिकारियों को बाकायदा कमीशन दिया जाता है। इस कारण बड़े अधिकारी छोटे कर्मचारियों को टारगेट या तनख्वाह रोकने का भय दिखाकर बीमा करवाने के लिए दवाब डालते हैं।(नोट:-बीमा आग्रह की वस्तु होती है दबाव की नही)
किसान कृषि अधिकारियों को सुनाते हैं खरी-खोटी:-
ऋणी किसानों के खाते को शासन के आदेश से स्वतः बीमित किया जाता है। और जो किसान अऋणी होते हैं उनको भी कृषि अधिकारियों द्वारा दबाव पूर्वक बीमा कराने का जोर दिया जाता है।
जबकि इस कार्य का कर्मचारियों को गुणवत्ता का उनके गोपनीय चरित्रवाली में कोई उल्लेख नही किया जाता
एक तो जिले के किसानों को बिमित राशि का सही भुगतान प्राप्त नही होता वरना किसान अपने फायदे के लिए स्वेक्षा से बीमा कराने को उत्सुक रहते।
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी सीधे ग्रामीण से जुड़े रहते हैं किसानों का सामना इन्ही को करना पड़ता है, और ये किसानों के जवाब देने को प्रतिबद्ध रहते हैं।
फिर भी जिले के कई ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी 50-100--200 अऋणी किसानों का बीमा ऐड़ी-छोटी की जोर लगाकर कर रहे हैं।
उपसंचालक कृषि ललित मोहन भगत ने इस माह का वेतन रोकने का दिया आदेश:-
विभागीय कार्यो के अतिरिक्त प्रशाशन के नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी-गोठान-गोधन योजना सभी कार्यों में सम्मिलित होकर कार्य कर रहे हैं।
इस पर कहीं ऐसा तो नही की ललित मोहन भगत बीमा कम्पनी वालों के फायदे के लिए अपने ही कर्मचारियों के वेतन रोकने का आदेश जारी कर उनके परिवार को आर्थिक संकट में डालने का प्रयास कर रहे हैं..!
जिससे ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों एवम उनके परिवार पर रक्षाबंधन मनाने का भी संकट मंडराने लगा है।
कृषि विस्तार अधिकारियों की माने तो जबसे ललित मोहन भगत सहायक संचालक कृषि के रूप में रायगढ़ में पदासीन हुवे हैं तब से कर्मचारियों से उनका व्यवहार हिटलरनुमा है.!
लेकिन फिर भी किसानों के साथ मिलकर जिले को इस कोरोना काल मे अनाज, दलहन, तिलहन में अग्रणी करने की कोशिश में लगे हुवे हैं।
लेकिन कहीं एक बीमा कम्पनी को फायदे पहुंचाने के लिए पूरे अंचल के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों के वेतन रोकने का आदेश देना कहीं भी तर्क संगत नही लगता है।
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी संघ में विद्रोह की भनक लगते ही उपसंचालक कृषि ललित मोहन भगत ने अपना पल्ला झाड़ते हुवे आदेश पारित कर दिया कि अनुविभागीय कृषि अधिकारी गुण दोष को देखते हुवे वेतन आहरित या रोकने का कार्य करेंगे। ये गुण दोष क्या है ये सिर्फ ललित मोहन भगत ही जान सकते हैं...!