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बाबा गुरु घासीदास बचपन से ही दिव्य व्यक्तित्व वाले थे ,उन्होंने कभी किसी गुरू से शिक्षा नहीं ली - लोकेश चन्द्राकर

बाबा की जयंती मनाने ग्राम लभरा खुर्द एवं कोसरंगी में शामिल हुए

आज बाबा गुरु घासीदास जी की 264 वी जयन्ती पर महासमुन्द जनपद क्षेत्र क्रमांक 14 के ग्राम लभरा खुर्द में जनपद सदस्य प्रतिनिधि एवं समाज सेवी लोकेश चन्द्राकर बाबा गुरु घासीदास जी 264वी जयंती के शुभ अवसर पर शामिल हुए। 

जिसमें ग्राम सरपंच चित्ररेखा तांडी सहित ग्राम के सतनामी समाज के ग्रामीणजन ने श्री चन्द्राकर से आने वाले वर्षों में बाबा की जयन्ती बड़े धूमधाम से मनायेंगे व बाबा का मंदिर खुले वातावरण में मनाने निवेदन किये। तत्पश्चात उन्होंने अपने जनपद क्षेत्र के ग्राम कोसरंगी में भी सरीक हुए। ग्राम कोसरंगी के सरपंच उमा साहू ,सरपंच प्रतिनिधि सुरेश साहू सहित सतनामी समाज के ग्रामीणजन चन्द्राकर की उपस्थिति देख सभी ने प्रसन्नता जाहिर किये। चन्द्राकर ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि,बाबा गुरु घासीदास बचपन से ही दिव्य व्यक्तित्व वाले थे। उन्होंने कभी किसी गुरू से शिक्षा नहीं ली, वरन नैसर्गिक तौर पर उन्हें विद्वता हासिल थी। जप- तप- ध्यान और सतकर्मों के साथ उन्होंने लोगों के समक्ष एक दिव्य गुरू के रूप में खुद को स्थापित किया। उनके समकालीन लाखों लोग उनके अनुयायी बने और आज भी उनके वंशज गुरु घासीदास बाबा के बताए रास्ते पर ही चलते हैं।

गुरु घासीदास जी ने भंडारपुरी को अपना तक स्थल बनाया। आज भी उनके वंशज यहीं रहते हैं। यहां रहते हुए उन्होंने लोगों को सिर्फ सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद को समाप्त करके मानव- मानव एक समान का संदेश दिया। बाबा गुरु घासीदास जी के समय समाज में भेदभाव और विसमता की बीमारी बुरी तरह फैली हुई थी। इसी का फायदा उठा कर विदेशी शक्तियां यहां अपनी पैठ बना रही थीं। बाबा इस बात को जानते थे कि जब तक यह बीमारी समाज से खत्म नहीं होगी, तक तक हमारा समाज खुशहाल नहीं बन पाएगा। इस समस्या के समाधान के लिए बाबा ने बहुत चिंतन किया। इसके बाद वे सत्य व समाधान की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर तप किया। इसके बाद उन्होंने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया और सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की। गुरु घासीदास ने सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म की सात सिद्धांत दिए।

गुरु घासीदास उन सभी का विरोध करते थे जो स्वयं को शक्तिशाली बता कर दूसरों का शोषण किया करते थे। उन्होंने जप- तप के बल पर ऐसी शक्तियां हासिल कीं जिनसे उनका आभामंडल पाखंडियों और दंभियों को स्वतह ही सुधार देता था। उनके शहर में आने वाले हर एक व्यक्ति का कल्याण होता था। कोई कितना भी दंभी हो, घमंडी हो या अपनी शक्ती के नशे में चूर हो, बाबा का दर्शन पाते ही उसकी आत्म चेतना जाग उठती थी। यह सब आंतरिक शक्तियां गुरु घासीदास जी को नैसर्गिक रूप से मिली थीं। प्राणी, पशुओं के साथ उनका स्नेह और प्रेम अटूट था। बाबा गुरु घासी दास सन 1850 तक लोगों के बीच सक्रिय रहे। इसके बाद उन्हें किसी ने नहीं देखा। कहा जाता है कि बाबा अंतरध्यान हो गए। आज भी बाबा गुरू घासीदास जी के संदेश पंथी नृत्य- गीतों में गूंजते हैं। उनकी शिक्षाओं को साथ लेकर समाज आज आगे बढ़ रहा है।


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