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"आत्मनिर्भर भारत" और "कचरे से धन अर्जन" के लिए बड़ा प्रोत्साहन; सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने असम में अगरबत्ती स्टिक बनाने की इकाई का उद्घाटन किया

भारतीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूत करने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के सतत प्रयासों ने असम के साथ स्वीकृत परिणाम की शुरुआत की है। गुरुवार को, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री श्री नितिन गडकरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से असम में बाजाली जिले में "केशरी जैव उत्पाद एलएलपी" नाम से एक प्रमुख बांस अगरबत्ती स्टिक बनाने की इकाई का उद्घाटन किया। इस अवसर पर असम के माननीय मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना उपस्थित थे।

यह इकाई “आत्मनिर्भर भारत” बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है और अगरबत्ती बनाने के अलावा “कचरे से धन अर्जन” का एक उपयुक्त उदाहरण है। इसमें अपशिष्ट बांस का एक बड़ी मात्रा का उपयोग जैव-ईंधन और विभिन्न तरह के अन्य उत्पादों को बनाने में किया जाता है। 10 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित, अगरबत्ती स्टिक बनाने की इकाई 350 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करेगी, जबकि 300 से अधिक अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी।असम में इन इकाइयों की स्थापना चीन और वियतनाम से कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध के मोदी सरकार के फैसले के मद्देनजर और अगरबत्ती के लिए गोल बांस की छड़ पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी के मद्देनजर काफी महत्व रखती है। इन दो फैसलों को दो देशों से अगरबत्ती और बांस की लकड़ियों के आयात पर अनिवार्य रूप से रोक लगाने के लिए लिया गया था, जिन्होंने भारतीय अगरबत्ती उद्योगों को पंगु बना दिया था।

नितिन गडकरी और केवीआईसी के अध्यक्ष विनय सक्सेना ने इन दोनों वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाने के लिए काफी प्रयास किए थे। परिणामस्वरूप, भारत में अगरबत्ती निर्माण की सैकड़ों बंद इकाइयां पिछले डेढ़ वर्षों में पुनर्जीवित हुईं और लगभग 3 लाख नए रोज़गार पैदा हुए हैं। केशरी जैव उत्पाद एलएलपी पहली बड़ी परियोजना है जो इन नीतिगत फैसलों के बाद आई है।

गडकरी ने असम में नई बांस की छड़ की इकाई बनने पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि इससे स्थानीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूत करने में काफी मदद मिलेगी। उन्होने कहा कि इस क्षेत्र में स्थानीय रोजगार सृजन की बहुत बड़ी संभावना है। श्री गडकरी ने कहा, "यह आत्मनिर्भर भारत का सबसे उपयुक्त उदाहरण है, जिसका उद्देश्य स्थानीय रोजगार और स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करना है।"असम के माननीय मुख्यमंत्री ने इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह विनिर्माण इकाई पूरे राज्य में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी।

केवीआईसी के अध्यक्ष विनय सक्सेना ने कहा कि कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध और बांस की अगरबत्ती पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी से भारत में रोजगार के बड़े अवसर पैदा हुए हैं और इन नई इकाइयों का उद्देश्य इस अवसर को भुनाना है। सक्सेना ने कहा, “अगरबत्ती उद्योग भारत के ग्राम उद्योग का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है जो 10 लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है। नई अगरबत्ती और बांस की छड़ बनाने वाली इकाइयां आने से, पिछले डेढ़ साल में इस क्षेत्र में लगभग 3 लाख नई नौकरियां पैदा हुई हैं। इस अवसर से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, केवीआईसी ने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से भारत के स्थानीय अगरबत्ती उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खादी अगरबत्ती आत्मनिर्भर मिशन नामक एक कार्यक्रम भी शुरू किया है। उन्होंने कहा कि नई अगरबत्ती बनाने की इकाई असम में बांस के विशाल उद्योग को भी मजबूती प्रदान करेगी।

यह उल्लेखनीय है कि अगरबत्ती की छड़ें बनाने के लिए केवल 16 प्रतिशत बांस का उपयोग किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस बेकार चला जाता है। हालांकि, केशरी जैव उत्पाद एलएलपी द्वारा नियोजित विविध प्रौद्योगिकी के साथ, बांस के प्रत्येक टुकड़े को उपयोग में लाया जाता है। मीथेन गैस के उत्पादन के लिए अपशिष्ट बांस को जलाया जाता है जिसे वैकल्पिक ईंधन के रूप में डीजल के साथ मिलाया जाता है। जले हुए बांस का उपयोग अगरबत्ती और ईंधन के रूप में उपयोग के लिए लकड़ी का कोयला पाउडर बनाने के लिए भी किया जाता है। अपशिष्ट बांस का उपयोग आइसक्रीम-स्टिक, चॉपस्टिक, चम्मच और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए भी किया जाता है।

वर्तमान में, भारत में अगरबत्ती की खपत 1490 टन प्रति दिन आंकी गई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रतिदिन केवल 760 टन का उत्पादन होता है। इसलिए, मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतर के परिणामस्वरूप कच्ची अगरबत्ती का भारी मात्रा में आयात हुआ। नतीजतन, कच्ची अगरबत्ती का आयात 2009 में सिर्फ 2 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 80 प्रतिशत हो गया।





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