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गरीब ड्राइवर की मौत ने मानवता को किया शर्मिंदा... जिले में मानवता हुवी शर्मशार..!

आज रायगढ़ शहर में एक ऐसी घटना हुई। जिसे बताने में भी हमें शर्मिंदगी महसूस हो रही है। 3 घंटों से इस पूरे वाकये को देखने के बाद इतना दावे के साथ कहा जा सकता है कि इस शहर में मानवता तो छोड़िए संवेदनाएं भी मर चुकी हैं। एक मरे हुए कर्मचारी के साथ ऐसा व्यवहार और ऐसी खानापूर्ति.. जिसने अंतरात्मा को झकझोर दिया है।

छातामुड़ा बाईपास के समीप स्थित गोयल रोड कैरियर में चलने वाली ट्रक क्रमांक सीजी 23B 0217 जिसका चालक राम खिलावन निराला जोकि रायगढ़ शहर से 35 किलोमीटर दूर ग्राम गोड़म का निवासी था। जिसकी उम्र करीब 45 वर्ष होगी जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। जोकि कल शाम गोयल ट्रांसपोर्ट के समीप अपना ट्रक खड़ा करता है तथा उसके साथ उसका सहयोगी जिसका नाम सोनी बताया जा रहा है उसे नशे की हालत में होना बताकर.. चला जाता है। गाड़ी रात भर खड़ी रहीं.. दोपहर तक खिलावन के शरीर में हरकत ना होने की वजह से शाम को ही ट्रांसपोर्टर के बताए अनुसार उसने पुलिस को सूचना दी। जुटमिल चौकी की पुलिस आयी और आकर मुआयना करके चली गई।एक तरह से सरकारी खानापूर्ति हो गई। लेकिन उसके बाद का जो दृश्य था। उसे देखने से ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोई इंसान की मौत नहीं हुई हो.. सड़क पर चलने वाला कोई एक मवेशी खत्म हो गया हो। धर्मात्मा की नगरी कहे जाने वाला रायगढ़ उस वक्त शर्मसार हो गया, जब कानूनी कार्रवाई होने के बाद या फिर यह कह लीजिए कि खानापूर्ति होने के बाद लगभग 3 घंटे तक उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था!

परिजनों को सूचना दे दी गई; ठीक उसी तरह जैसे कि किसी गुम हुए सामान की सूचना दे दी जाती है! आप आइए और अपना सामान ले जाइए! आनन-फानन में परिजन यहां पहुंचे। आप कल्पना कीजिए कि अगर किसी को यह पता चले कि उसके परिवार का कोई एक.. हंसते-खाते घर से निकला हो.. और उसे जब इस प्रकार की सूचना मिले तो उस वक्त उसके हालात.. उसके जज्बात क्या होंगे..?

जब परिजन यहां पहुंचे तो उसे अस्पताल तक ले जाने के लिए किसी प्रकार के वाहन की भी व्यवस्था रात 10:45 तक नहीं हो पाई थी। अब समझिए कि एक इंसान की लाश पिछले 24 घंटे से एक ट्रक के केबिन में पड़ी है। जिम्मेदार आते हैं, खानापूर्ति करते हैं और चले जाते हैं! वह जिसके यहां काम करता है, वह भी एक रूटीन वर्क की तरह इंफॉर्मेशन देता है और पल्ला झाड़ कर चला जाता है! अब आप समझ लीजिए कि संवेदनाएं किस हद तक मर चुकी हैं!अब सवाल यह उठता है कि इतने लंबे समय तक वह व्यक्ति सोता रहा और क्यों ट्रांसपोर्ट को उसकी सुध लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई..? क्या एक व्यक्ति के जान इतनी सस्ती हो सकती है या फिर कहानी कुछ और ही है?कहीं इस पूरे मामले से मालिक अपना पल्ला झाड़ना तो नहीं चाह रहा है? क्या उसका कोई दायित्व नहीं बनता! यहां एक इंसान मरा है कोई कोल्हू का बैल नहीं!

परिजनों का यह कहना है के खिलावन यहां रहकर गाड़ी चलाने का कार्य करता था। अगर वह लंबे समय तक नींद से नहीं जागा तो ट्रांसपोर्टर को उसकी सुध लेनी चाहिए थी । मान लीजिए कि आप कहीं काम करते हैं वहां पर कुछ हो जाता है या फिर कुछ भी असामान्य दिखता है तो उस पर गौर करना उस मालिक की जवाबदारी नहीं बनती, जिसके लिए वह काम करता है! क्या इसलिए उसकी कोई सुध नहीं ली गई क्योंकि वह एक मामूली ड्राइवर था? क्या ड्राइवर इंसान नहीं होता..?




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