news-details

कई रहस्यों से भरा है सिरपुर का इतिहास, एलियन के रहस्यों को खोजने अमेरिका से पहुँची थी टीम.

छत्तीसगढ़ और महासमुंद जिले का गौरव सिरपुर अपने आप में कई रहस्मयी इतिहासों के गवाहों को समेटे हुए है. महानदी के तट पर स्थित यह पावन नगरी विभिन्न संस्कृतियों का एक अद्भुद गंठजोड़ है. इसका इतिहास त्रिदेव के प्रकट होने से लेकर रामायण, गौतम बुद्ध, ह्वेन त्सांग से जुड़ा हुआ है. इसके अलावा यहाँ खुदाई के दौरान एलियन के जैसे पुतले भी मिले थे जिस पर डाक्युमेंट्री बनाने अमेरिका की एक टीवी चैनल की टीम आई थी.

सिरपुर में मिलीं एलियंस की प्रतिकृतियां

सिरपुर में मार्च 2017 में यहाँ एलियन के जैसे दिखने वाले पुतले मिले थे. इन पुतलों को देख देश विदेश के लोग आश्चर्यचकित हो उठे थे. इनके रहस्यों को खोजने और विडियो डाक्युमेंट्री बनाने अमेरिका की एंशिएट एलियन की टीम के साथ हिस्ट्री चैनल वाले भी पहुँचे थे.

यह पुतले सिरपुर में खुदाई के दौरान मिले थे जो करीब 26 सौ वर्ष पुराने बताये जा रहे थे. यह कोई सामान्य पुतले खिलौने की तरह नहीं थे. ये पुतले पश्चिमी देशों में मिले एलियंस के नाम से विख्यात मूर्तियों के ही समान थे. जिन्हें आज से लगभग 2600 सौ वर्ष पुर सिरपुर के कलाकारों द्वारा बनाया गया होगा.

चीन के बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग के ग्रंथो में भी है सिरपुर का उल्लेख

सिरपुर का उल्लेख चीन के बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग के ग्रंथो में भी है. ह्वेन त्सांग हर्षवर्धन के काल लगभग सन 622 ई. में भारत आया था और लगभग 20 वर्ष भारत में गुजारा था. इस अवधि में ह्वेन त्सांग कुछ दिन सिरपुर में भी रहा. उन्होंने अपने ग्रंथो में इस बात का उल्लेख लिया है कि ईसा पूर्व 6 वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म की स्थापना करने वाले गौतम बुद्ध भी लगभग तीन महीने सिरपुर में बितायें है.




भारत का सबसे बड़ा बौद्ध स्थल 

जानकारी के अनुसार पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है. यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है. यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10,000 बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के भी प्रमाण मिले हैं.


बंदरगाह के जरिये होता था देश विदेशों में व्यापार

6 वीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित राजधानी थी जहां देश विदेश से व्यापार होता था. इस प्राचीन राजधानी में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर अंडर ग्राउंड अन्नागार तक मिले हैं. सिरपुर में विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों में महानदी के माध्यम से व्यापार होता था.

सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है. पहले महानदी में पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमें जहाज आया जाया करते थे.सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं.

दस बिस्तरों वाला आयुर्वेदिक अस्पताल जहाँ होती थी शल्य चिकित्सा

इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी में धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है. जहाँ लोगों का इलाज आयुर्वेद के माध्यम से किया जाता था. 

पुरातन वैदिक पाठशाला

उत्खनन में मिले 5वीं शताब्दी में बनाई गई वैदिक पाठशाला के प्रमाण भी यहां देखे जा सकते हैं. यह वैदिक पाठशाला 10 मीटर लंबाई व 1. 5 मीटर चौड़ाई के कमरों से बना है. जानकारी के अनुसार इस कमरे में 60 विद्यार्थियों के पढऩे की व्यवस्था थी. इसके साथ यहां पर शिक्षकों के कमरें भी मिले हुआ करते थे.

भव्य स्नान कुंड

सिरपुर में उत्त्खनन के दौरान एक कुंड भी मिला. इस कुंड के चारों तरफ 12 स्तम्भ भी थे. इनके अवशेष के रूप में आधार स्तम्भ शेष बचे हैं. कुंड के उत्तर पूर्व में तुलसी चौरा है. इसमें जल की निकासी के लिए एक भूमिगत नाली से जोड़कर कुंड से मिलाया गया है.

बताया जाता है कि यह कुंड संभवत: आयुर्वेदिक स्नान के लिए प्रयुक्त होता था. कुंड में नीम की पत्तियां डालने का अनुमान हो सकता है. यहां पर संभवत: तेल स्नान पद्धति का भी उपयोग किया जाता रहा होगा.

यहां सात धान्य भंडार भी मिले. जिनमें तुलसी और नीम पत्ती व गेरू के टुकड़े रखकर दीमक से सुरक्षा करने के प्रमाण मिले हैं.

लंका के राजा रावण के ससुर मय का भी जिक्र

कथाओं के अनुसार यह भी दावा है कि इस शहर की डिजाइन लंका के राजा रावण के ससुर मय ने बनाया है. रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मय का जिक्र पुराणों और पुरानी तमिल पांडुलिपियों में अद्वितीय वास्तुविद के रूप में मिलता है.

प्रभु श्री राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिरपुर प्रभु श्री राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि हुआ करती थी. पूर्व में सिरपुर का नाम श्रीपुर हुआ करता था जो कि दक्षिण कोशल का राजधानिक केन्द्र हुआ करता था. जानकारी के अनुसार उसके संबंध में यह तर्क देते हैं कि चूंकि कौशल्या कोशल प्रदेश की राजकन्या थी इसलिए उनका जन्म राजधानी में ही हुआ होगा.

जबकि इस संदर्भ में कई लोग रायपुर जिला के ग्राम चंदखुरी को तो कई लोग बिलासपुर जिला के अंतर्गत ग्राम कोसली को माता कौशल्या की जन्म भूमि माना करते है जो कि दक्षिण कोशल में ही हुआ करती थी.  

प्रभु श्री राम का सिरपुर आगमन

भगवान श्रीराम को जब 14 साल का वनवास मिला था तब उनको सिरपुर से होकर ही दक्षिण की तरफ जाना पड़ा था. श्रीराम के छत्तीसगढ़ के सिरपुर से होकर जाने के और कई प्रमाण पहले से भी छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं जैसे आरंग में अहिल्या का स्थान होने के साथ तुरतुरिया में बाल्मीकि का आश्रम. सात ही दंडकारण्य जाने का सबसे बेहतर रास्ता सिरपुर से होकर ही जाता था.

यह बात भी स्थापित है कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था. इस चौराहे से गुजरे बिना कोई भी दूसरी दिशा में जा ही नहीं सकता था. जहां किसी को दक्षिण की और जाना होता था तो उसको इलाहाबाद, सतना, अमरकंटक के बाद सिरपुर होकर ही दक्षिण की और जाना पड़ता था. श्रीराम भी दक्षिण जाने के लिए इस चौराहे से होकर गए थे. इस मार्ग का उपयोग उस समय ज्यादा इसलिए भी होता था क्योंकि यही एक ऐसा मार्ग था जिस मार्ग में नदियां कम पड़ती थी.

माता सीता का आश्रय स्थल तुरतुरिया

तुरतुरिया सिरपुर से 15 मील घोर वन प्रदेश के वारंगा की पहाडिय़ों के बीच बहने वाली बालमदेई नदी के किनारे पर स्थित है.इस स्थान पर एक झरने का पानी तुरतुर की ध्वनि से बहता है, जिससे इस स्थान का नाम ही तुरतुरिया पड़ गया है. तुरतुरिया के विषय मेंं कहा जाता है कि श्रीराम द्वारा त्याग दिये जाने पर माता सीता ने इसी स्थान पर वाल्मीकि आश्रम मेंं आश्रय लिया था. उसके बाद लव-कुश का भी जन्म यहीं पर हुआ था.

रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह स्थान तीर्थ स्थलों मेंं गिना जाता है. धार्मिक दृष्टि से भी इस स्थान का बहुत महत्त्व है, और यह हिन्दुओं की अपार श्रृद्धा व भावनाओं का केन्द्र भी है.

इसके अलावा यहाँ अनेक बौद्ध कालीन खंडहर हैं. भगवान बुद्ध की एक प्राचीन भव्य मूर्ति, जो यहाँ स्थित है, जनसाधारण द्वारा वाल्मीकि ऋषि के रूप मेंं पूजित है. पूर्व काल मेंं यहाँ बौद्ध भिक्षुणियाँ का भी निवास स्थान था.



ईटों से बना भारत का पहला मंदिर.

सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर भारत का ईंटों से बना पहला मंदिर है. इस मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है यह ताजमहल से भी पुराना है. लाल ईटों से तराशा गया यह एक बेहद ही सुन्दर मंदिर है. बताया जाता है कि यह मंदिर ताजमहल से भी 1100 वर्ष पुराना है. इन ईटों की कलाकृति पुरे विश्व में प्रसिद्ध है. जो कला आज लकड़ियों में उकेरी जाती है वही कला कभी ईंटों में बनाई जाती थी.

यह मंदिर लगभग 6वीं शताब्दी का बताया जाता है. जिसे महारानी वासटा देवी द्वारा इस मंदिर का निर्माण अपने पति हर्षगुप्त की स्मृति में बनवाया गया था. सुंदरता से मन को मोहने वाले इस मंदिर की तुलना ताजमहल से की जाती है. वहीं रविंद्रनाथ टैगोर ने लक्ष्मण मंदिर को समय के गाल पर बिंदी सा चमकने वाला अद्भुत रत्न कहा है.    

सिरपुर का प्रसिद्ध ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर वास्तुकला प्रदर्शित हैं. शिल्पी द्वारा ईंटों से निर्मित इस मंदिर को हल्के कोमल हाथों से ईंट को तराश कर पच्चीकारी की गई है, जो इस मंदिर वास्तुकला सुन्दर ही नहीं, अपितु अप्रतिम बनाती हैं. सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर शिल्पांकित यह दुर्लभ प्रतिमा नायक-नायिका की हैं. यह प्रतिमा छत्तीसगढ़ की उत्कृष्ट कलाकृति मानी जाती हैं.

खुदाई में मिला पंचायतन शैली का मंदिर सुरंग टीला

पुरातात्विक नगरी सिरपुर में वैसे तो प्रायः हर तालाब और पाण्डुवंशीय काल में बड़े-बड़े मंदिरों, का निर्माण हुआ. जिसका प्रवेश द्वार कम से कम दस फुट चौड़ा था. इसी दौरान सुरंग टीला पंचायतन मंदिर का निर्माण हुआ.

सुरंग टीला मंदिर महानदी नदी के किनारे पर स्थित यह ऐतिहासिक शहर अपने प्राचीन मंदिरों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित पुरातात्विक उत्खनन के लिए प्रख्यात है. सुरंग टीला मन्दिर की खुदाई भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सन् 2006-07 की गई. भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण महाशिवगुप्त बालार्जुन द्वारा 7 वीं शताब्दी में करवाया गया.

पंचायतन शैली में निर्मित इस मंदिर के प्रांगण में 5 देवालय हैं जिनमें कि केंद्र स्थान में मुख़्य मंदिर और चारों कोनों में चार मंदिर स्थापित हैं. यह पंचायतन शैली का सबसे पुराने नमूने में से एक है. पंचायतन शैली मंदिरों की वह शैली है जिसमें मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है.  

पंचायतन मंदिर के अन्य उदाहरण कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो ), ब्रह्मेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर ), लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो), लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर ), दशावतार मंदिर( देवगढ़ उत्तर प्रदेश), गोंदेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र) है.


गंधेश्‍वर मंदिर

सिरपुर में गंधेश्‍वर महादेव का मंदिर भी है. इस मंदिर में भगवान शिव की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है. चूंकि इस स्‍थान पर महादेव ने दर्शन दिए थे इस कारण सिरपुर, छत्तीसगढ़ को काशी के नाम से भी जाना जाता है. महादेव की जटा से निकलकर गंगा सिहावा पर्वत से शृंगी ऋषि के वरदान से प्रकट हुई और छत्तीसगढ़ की पावन धरा सिरपुर से होकर गुज़री. इसी वजह से इस स्‍थान का धार्मिक महत्‍व बहुत बढ़ जाता है. श्रावण मास के महीने में इस मंदिर में लाखों की संख्‍या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार पुरातात्‍विक धरोहर सिरपुर एक समय में दानव राज बाणासुर की राजधानी हुआ करती थी. इसी स्‍थान पर बाणासुर ने अपनी घोर तपस्‍या से भगवान शिव को प्रसन्‍न किया था. आस्था है कि इस पावन स्‍थली पर ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश एक साथ त्रिनाथ के नाम से प्रकट हुए थे.


बताया जाता है कि सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था. जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा.

विश्व धरोहर घोषित कराने की मांग

सिरपुर के इन पुरातन विशेषताओं के देखते हुए कई वर्षों से इसे विश्व धरोहर घोषित कराने की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है. हालाकि राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे एक विशेष पहचान मिली है. लेकिन इसके बावजूद अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.



अन्य सम्बंधित खबरें