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राम मंदिर की कथा, अनुश्रुति से परंपरा तक

अयोध्या में प्रातः सूर्य की पहली किरणें सिर्फ पत्थर के स्तंभों और नक्काशीदार मीनारों को ही प्रकाशित नहीं करतीं। वे उस कथा पर भी प्रकाश डालती हैं जिसने शताब्दियों से भारत के सांस्कृतिक अंतस को गढ़ा है। अपनी पूरी भव्यता के साथ खड़ा राम मंदिर सिर्फ वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना ही नहीं, बल्कि आस्था और समुत्थान का संगम भी है।

दुनिया भर के लाखों व्यक्तियों ने हमेशा से अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली माना है। इस पवित्र स्थान पर मंदिर बनाने का विचार भारत की सांस्कृतिक पहचान से गुंथा हुआ है। यह मंदिर इस स्थल को विश्व भर के आस्थावानों के लिए आध्यात्मिक संकेतक बनाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 नवंबर, 2025 को 22 फुट की धार्मिक ध्वजा फहरा कर ध्वज आरोहण का पवित्र हिंदू अनुष्ठान संपन्न करेंगे। शास्त्रीय परंपरा में ध्वज आरोहण को अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना गया है। यह विश्व भर के उपासकों को इस समारोह में हिस्सा लेने का खुला निमंत्रण देता है।

एक संक्षिप्त प्रासंगिक इतिहास

इस उपलब्धि के पीछे गहन आस्था, सांस्कृतिक स्मृति की विजय और कानून के शासन के अंतर्गत ऐतिहासिक न्याय की बहाली की कथा है।

अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की यात्रा भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से एक लंबे कानूनी और सांस्कृतिक मामले को सुलझाए जाने का उदाहरण है। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर, 2019 को समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि एक सर्वसम्मत और ऐतिहासिक निर्णय के अंतर्गत राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दी। न्यायालय ने विश्व भर के आस्थावानों के लिए इस स्थल के महत्व को स्वीकार किया। इस निर्णय की न्याय, मेलजोल और सांवैधानिक सिद्धांतों की जीत के रूप में सराहना की गई। इससे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की देखरेख में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। भारत सरकार ने 5 फरवरी, 2020 को इसके लिए स्वीकृति प्रदान कर दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को भूमि पूजन और शिलान्यास किया जिसके साथ ही मंदिर निर्माण के संकल्प को मूर्त रूप मिल गया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि यह समारोह शताब्दियों की प्रतीक्षा के अंत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह मंदिर भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करेगा तथा संयोजकता और आर्थिक अवसरों में वृद्धि के माध्यम से क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देगा।

भव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर पारंपरिक नागर स्थापत्य शैली में बना हुआ है। इसमें 392 स्तंभ और 44 प्रवेश द्वार हैं। इसके स्तंभों और दीवारों पर हिंदू देवताओं और देवियों की उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। भूतल पर बने गर्भगृह में भगवान श्री रामलला को प्रतिष्ठापित किया गया है।

राम लल्ला की मूर्ति ग्राउंड फ़्लोर पर मुख्य गर्भगृह में रखी है, जहाँ पूर्वी दरवाज़े पर सिंह द्वार से 32 सीढ़ियों से पहुँचा जा सकता है। इस कॉम्प्लेक्स में भक्ति गतिविधियों के लिए पाँच मंडप (हॉल) हैं—नृत्य, रंग, सभा, प्रार्थना और कीर्तन मंडप, साथ ही कुबेर टीला पर पुराने शिव मंदिर और ऐतिहासिक सीता कूप कुएँ का जीर्णोद्धार भी किया गया है।

आज, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र भारत की सभ्यता की निरंतरता और कानून समर्थित आस्था की ताकत का साक्ष्य है। यह शानदार भवन न सिर्फ़ अयोध्या की आध्यात्मिक विरासत को फिर से जीवित करता है बल्कि समग्र विकास को भी बढ़ावा देता है, जिसमें महर्षि वाल्मीकि अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा और दोबारा से बनी नई सड़कें शामिल हैं। इन बुनियादी सुविधाओं से यहाँ के तीर्थ और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल रहा है।

अयोध्या में राम मंदिर उन शिल्पकारों की अटूट आस्था का सबूत है, जिन्होंने चिलचिलाती गर्मी में दिन-रात मेहनत की है। यह राम मंदिर के प्रति सामूहिक राष्ट्रीय भावनाओं को प्रदर्शित करता है।

इससे पहले भी, राम मंदिर के निर्माण के उत्साह की भावना भारत के बाहर दूर तक गूंजी थी। उदाहरण के लिए त्रिनिदाद और टोबैगो अपनी राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण की योजना को आगे बढ़ा रहा है। यह मई 2025 में पोर्ट ऑफ़ स्पेन में अयोध्या के राम लल्ला की मूर्ति की प्रतिकृति के अनावरण के बाद हुआ है। ऐसे कार्यक्रम आध्यात्मिक प्रयास और सांस्कृतिक भावना का महत्वपूर्ण मेल दिखाते हैं, साथ ही धार्मिक पर्यटन और तीर्थगमन के दरवाज़े भी खोलते हैं।

इस मंदिर को अहमदाबाद के चंद्रकांत सोमपुरा ने डिज़ाइन किया है। इसके निर्माण का काम विश्व प्रसिद्ध कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को सौंपा गया है और टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया है। “यह राम के रूप में राष्ट्रीय चेतना का मंदिर है। भगवान राम भारत की आस्था, नींव, विचार, विधि, चेतना, सोच, प्रतिष्ठा और गौरव हैं|”

यह परियोजना प्राचीन शिल्प कौशल के अत्याधुनिक विज्ञान के साथ जुड़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बॉम्बे, और आईआईटी गुवाहाटी सहित देश के प्रमुख संस्थानों के इंजीनियर और बुद्धिजीवी इस पत्थर के मंदिर के निर्माण में शामिल हैं जो एक हज़ार साल तक कायम रहेगा।

मंदिर में सभी उम्र के भक्तों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आधुनिक सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं, जिसमें एक समर्पित तीर्थयात्रा सुविधा केंद्र, बुज़ुर्ग भक्तों के लिए रैंप और आपातकालीन चिकित्सा सहायता आदि शामिल हैं। अपने विशाल आकार के बावजूद, मंदिर परिसर में सौर ऊर्जा पैनल लगाए गए हैं जो शहर के संवहनीय स्थलों के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है।

राम मंदिर पर 25 नवंबर, 2025 को भगवा ध्वज लहराने के साथ ही इस चिरस्मरणीय परिसर का निर्माण कार्य पूर्ण हो जायेगा। इसके साथ ही एक विवादित सपने से लेकर जीवंत विरासत तक की यह यात्रा भी अपने गन्तव्य पर पहुँच जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह ध्वजारोहण न केवल मंदिर की वास्तुकला का बल्कि धर्म की चिरस्थायी भावना का भी उत्सव मनाएगा क्योंकि अयोध्या सद्भाव, परम्परा और विकास के केंद्र के रूप में फिर से उभर रहा है। राम मंदिर केवल पत्थरों से बनी एक संरचना नहीं है—यह समुत्थान, भक्ति और प्राचीन परंपरा और एक जुड़े हुए वैश्विक भविष्य के बीच सेतु का प्रतीक है।


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