
सरायपाली:- सिंघोड़ा के रुद्रेश्वरी मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग
सरायपाली:- राष्ट्रीय राजमार्ग 53 पर सराईपाली नगर से 20 किलोमीटर दूर स्थित सिंघोड़ा के रुद्रेश्वरी मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने तथा मंदिर का शासकीय करण करने की मांग ग्रामीणों द्वारा कलेक्टर महासमुंद से की गई है. कलेक्टर को दिए पत्र में चिवराकुटा के ग्रामीण जन मोहन गुप्ता प्रकाश, संतोष परिहार, उषा पांडे, सरिता बलराम आदि ने उल्लेख किया है कि ग्राम पंचायत चिवराकुटा के आश्रित ग्राम गनियारीपाली के भूमि में लगभग 40 वर्ष पूर्व एक बाबा दुलीचंद शर्मा द्वारा श्री रुद्रेश्वरी मंदिर का निर्माण किया गया था. बाबा का स्वर्गवास हुए लगभग 15 वर्ष हो चुके हैं इसे देखते हुए ग्रामोदय मंदिर का शासकीय करण कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग ग्रामीणों ने की है
सरायपाली से 20 दूर पहाडों और चट्टानो के बिच कर सकते है मां रूद्रेष्वरी का दर्शन
सरायपाली से सम्बलपुर जाने वाले राजमार्ग क्रमांक 53 में सरायपाली से 20 किलोमीटर दूर ओडिसा सीमा से लगे ग्राम सिंघोडा में स्थित है माता रुद्रेस्वरी का मंदिर। पहाडों और चट्टानो को काटकर बनाया है माता रुद्रेश्वरी देवी का भव्य मंदिर स्वर्गीय स्वामी शिवानंद जी महाराज के द्वारा तीन दषक पहले सन 1977 में बनाया गया था. बताया जाता है कि स्वामी शिवानंद आसाम से द्वारीकापुर की पैदल तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे और यात्रा के दौरान इसी पहाडी पर शांत वातावरण ने उन्हे कुछ देर रूकने पर विवष कर दिया, उन्हे विश्राम के दौरान माता के भव्य मंदिर बनाने की आत्म प्रेरणा मिली।
उस समय यहां मा भगवती घंटेशवरी देवी का एक छोटा सा जीर्ण-षीर्ण स्थान था। राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने वाले अधिकांश ट्रक और कई वाहन मंदिर के सामने रूकते और मां के दर्शन कर कुछ देर विश्राम करते और फिर अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ते। मानो लंबी यात्रा के लिए यह कोई पडाव हो।
यहां की प्राक्रितिक सौंदर्य और चारो ओर घनी पहाडियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, सड़क के दूसरे किनारे सरकार द्वारा बनाया गया बांध और एक छोटा नाला जिसके निकट वन विभाग की नर्सरी स्थित है वहाँ स्वामी शिवानंद जी महाराज कुछ वर्षो बाद द्वारिका धाम से वापस आकर रुक गए और भव्य मंदिर निर्माण का विचार करने लगे देखते ही देखते माता की कृपा और आशीर्वाद से बिना किसी से चंदा लिए धर्मप्रेमी जन स्वतः ही मंदिर निर्माण में अपना सहयोग देने आगे आते गए और मंदिर बनना शुरू हो गया। जानकार बताते है कि मंदिर को पूरा बनने में लगभग 18 वर्ष लग गए राष्ट्रीय राजमार्ग से लगकर पहाडी पर 81 फुट उंचे भव्य मंदिर का निर्माण सम्पन्न हुआ। राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 से इसकी उंचाई 131 फुट है, सवा 5 फुट उंची संगमरमर से बनी मां रूदे्रष्वरी देवी की प्रतिमा स्थापित की गई, मंदिर दक्षिणमुखी है और सड़क से करीब 65 सीढीयां जो 60 फुट चैंडी है. सीढीयां चढ़कर माता के दर्शन को जाया जाता है, विशाल 20 खंभों पर बना माता के इस मंदिर के चारो ओर मां दुर्गा के 9 अवतारों के चित्र बने हुए है। मंदिर के मुख्य द्वारा चौखट दरवाजे व अन्य दरवाजों पर काष्ट शिल्प का बेहतरीन उपयोग किया गया है, मां रूदे्रष्वरी की स्थिापित प्रतिमा पर 10 फुट गोलाई का एक गुंबज है, मंदिर के उपरी हिस्से में भी एक गुंबज बना है जिसका व्यास 140 फुट तथा उंचाई करीब 65 फुट है.
भीतरी भाग में चारों संगमरमर लगा हुआ है। मंदिर के कुछ ही दूरी पर दोनो तरफ ज्योति प्रज्जवलित कक्ष, हवनकुंड आकर्षक बनाया गया है। मां रूद्रेष्वरी देवी मंदिर में 12 माह 24 घंटे श्रधालुओं की चहल-पहल रहती है, दोनो नवरात्र पर्व में अन्य तीज त्यौहारों की अपेक्षा ज्यादा रहती है। मां रूदे्रष्वरी देवी ट्रस्ट के द्वारा प्रतिवर्ष नेत्र शिविर व अन्य सामाजिक धार्मिक जनहित के कार्य लगातार किए जाते है, 12 बजे अन्न प्रसाद लगता है, मां घंटेशरी देवी की प्राचिन प्रतिमा वर्तमान मंदिर के सामने बने बांध के पास कुंभी वृक्ष के नीचे स्थापित है
उस स्थान पर अनेकों मंदिर बनाने एवं माता जी की प्रतिमा को कहीं और स्थापित करने की अनेको बार कोशिश की गई परन्तु बताया जाता है कि माता ने स्वप्न में आकर मना कर दिया कि मुझे कहीं और नही जाना और इसी स्थान पर मंदिर बनाना है। बाबा स्वर्गीय शिवानंद जी महाराज को माता का आशीर्वाद प्राप्त था और उन्ही के अथक परिश्रम से माता का मंदिर बनकर तैयार हुआ जहां दूर दराज से भक्त अपनी मन्नतों को लेकर यहां पहुंच रहे है।