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बिग ब्रेकिंग - सारंगढ़ उपजेल में दहशत का पर्याय बन बैठे कुछ जेल-प्रहरी..! जेल जाते ही उनसे बच के रहने की दी जाती है सलाह..!पढ़िए जेल में वक्त गुजारे लोगों की कहानी, उन्ही की जुबानी...!

"महात्मा गांधी ने कहा था कि अपराध से नफरत करो अपराधी से नही" लेकिन जब किसी पर सिर्फ आरोप सिद्ध ही नही हुवा हो उन्हें जानवरों की तरह मारना गाली देना मानवाधिकार का उलंग्घन ही नही अपितु शर्मशार कर देने वाली घटना है। और यह घटना सारंगढ के उपजेल में आये दिन घटित हो रही है। ये हम नही वो चश्मदीद बयां कर रहे हैं जो सारंगढ़ उपजेल में किसी कारणवश गुजार कर और दोषमुक्त होकर आए हैं।

एक विचाराधीन बंदी दीपक मराठा की मौत से उपजेल सारंगढ़ है सुर्खियों पर-

विगत दिनों एक विचाराधीन बंदी मराठा की मौत ने पूरे जेल प्रशासन और सारंगढ़ को मीडिया की शुर्खियों में ला दिया था।
इतने चौकस निगरानी होने के पश्चात कोई व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है समझ से परे की बात लगती है, बहरहाल ये हत्या है या आत्महत्या ये तो जाँच का विषय है। परंतु उच्चस्तर की लापरवाही सारंगढ़ उपजेल में बरती गई है इससे इनकार नही किया जा सकता।

कैसे होता है जेल का रहन सहन-

जब किसी व्यक्ति पर कोई आरोप लगता है तो उसे जमानत मिलने तक या खुद को बेगुनाह साबित करने तक जेल में रखा जाता है। जेल में 2 तरह के लोगों को रखा जाता है-कैदी और विचाराधीन बंदी। जिसे गुनाह साबित होने पर कारवास की सजा सुनाई गई होती है उसे कैदी कहते हैं जिनके लिए बाकायदा ड्रेस और उनका पहचान नम्बर दिया जाता है। 


वही दूसरी ओर जिस पर कोई इल्ज़ाम लगा होता है लेकिन गुनाह सिद्ध नही होता उसे बंदी कहा जाता है वो जेल के अंदर नॉर्मल ड्रेस में रहते हैं। चूंकि वो विचारधीन रहते हैं और उनकी सुनवाई प्रक्रिया न्यायालय में चल रही होती है और अगर वो सच मे गुनहगार होंगे तो कहीं फरार न हो जाये इसलिए उन्हें जेल में सुरक्षित रखा जाता है। लेकिन जैसे ही कोई बंदी उपजेल पहुंचता है उन्हें 3 जेल प्रहरियों से बचके रहने की हिदायत सीनियर कैदियों द्वारा दी जाती है वो हैं
महेंद्र वर्मा, महेंद्र साहू और इच्छामिन...!

जेल पहुंचते ही दिया जाता है महेंद्र वर्मा से बचके रहने और सेटिंग करने की सलाह..

जेल गये लोगो की माने तो जो भी विचाराधीन व्यक्ति/ बंदी पहले जब बैरक में प्रवेश करता है तो उसे एक प्रहरी से बचके रहने की सलाह दी जाती है उसका नाम है महेंद्र वर्मा..! जेल से निकले व्यक्ति ने बताया जेल के अंदर महेंद्र वर्मा न सिर्फ बंदी/कैदियों से गाली गलौच करता है बल्कि नंगा करके इतनी पिटाई भी करता है जिसे देखकर सबकी रूह कांप जाती है। अतः जब भी कोई मुलाकाती अपने परिजन से मिलने जाता है तो उन्हें महेंद्र वर्मा इच्छामिन और महेंद्र साहू से बचकर रहने और उनको सेटिंग करने की सलाह दी जाती है। एक व्यक्ति ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि व्यक्ति भले ही निर्दोष साबित हो, या उसे कानून सजा दे लेकिन जेल पहुंचते ही पहली नर्क प्रताड़ना महेंद्र वर्मा से मिलती है। अगर कोई उसकी बात नही माने तो जेल के अंदर उसे बैरक का पोंछा और पैखाना जिसे जेल के भाषा मे खुड्डी कहते हैं साफ कराया जाता है, और फिर भी कोई नियमावली या मानव अधिकार की बात करे तो डंडे जिसे जेल सन्दर बोंगा कहते हैं से बेरहमी से पिटाई की जाती है।


डिग्री कॉलेज खेल मैदान में युवाओं और नागरिकों को भी दिखाता है दबंगई-

इससे पहले भी महेंद्र वर्मा पर कई नागरिकों की शिकायत है कि व्यायाम करने के बहाने से डिग्री कॉलेज की दीवार को आधा तोड़कर इसके द्वारा सुबह शाम डिग्री कॉलेज में घुसा जाता है। शासकीय मैदान को अपना निजी मैदान समझने वाले यही महेंद्र वर्मा और उसके साथी युवाओं को और नागरिकों पर भी अपना रौब दिखाते रहता है जिसकी कई बार मौखिक शिकायत मीडिया और थाने में नागरिकों द्वारा की गई है, लेकिन छोटी मामलों को तूल देने से बचने के लिए उसकी बातों को इग्नोर किया जाता रहा है। जिससे उसकी दबंगई जेल के बाहर भी बढ़ने लगी है।

क्या जेल के अंदर फांसी लगाने वाले युवक दीपक मराठा भी था प्रताड़ित..!

उपजेल से बाहर निकले और मीडिया को अंदर की परिस्थितियों की जानकारी देने वालों की बात सुनकर एक बात तो साफ हो गयी है कि उपजेल सारंगढ में व्यक्ति सुरक्षित नही है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से कठिन दौर में गुजर रहा हो उन्हें मानसिक शक्ति प्रदान करने देश के कई जेलों में कॉउंसलिंग की जाती है योगा के माध्यम से मन और तन को मजबूती प्रदान की जाती है वहीं इस सारंगढ़ उपजेल में गंगा उल्टी धारा में बह रही है जिसके जिम्मेदार महेंद्र वर्मा सरीखे कुछ कर्मचारी जिम्मेदार हैं जो विचाराधीन कैदियों को जानवर से बद्दतर समझकर पेश आते हैं।

जेल प्रबंधन की घोर लापरवाही हुवी दर्शित-

जेल के अंदर जब दिन रात 24/7 घण्टे प्रहरियों की ड्यूटी रहती है। दिन -रात को 24 घण्टे बैरक में बंदियो/और कैदियों की 6-6 घण्टे की ड्यूटी रहती है जो जाग कर बैरक के अंदर पहरे देते हैं। हर बैरक में एक कैदी हेड होता है जिसे राइटर कहते हैं वो सुबह उठने के बाद, खाने के बाद, शाम को बैरक में टाला बन्द करने के पश्चात भी बैरक में उपस्थित बंदियो/कैदियों की गिनती कर प्रहरी को सूचित करता है,फिर प्रहरी अधीक्षक को सूचना देते है, कितने व्यक्ति आज, कितने रिहा हुवे, हर बिंदु की लिखित जानकारी देते हैं, तो "दीपक मराठा" के केश में क्या ये सब गिनती नही हुवा, या उसकी मृत्यु आत्महत्या नही एक साजिश है? या एक 24 वर्षीय युवक इन महेंद्र वर्मा जैसे कर्मचारियों के डर या प्रताड़ना से तंग आकर ये कदम उठाया ये जांच का विषय तो ज़रूर है। देखते हैं उच्चाधिकारी इन कर्मचारी और इतनी बड़ी लापरवाही बरतने वाले जेल प्रबंधन पर क्या कर्यवाही करती है।




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