156 देशों की लिस्ट में नीचे से 17वें स्थान पर भारत....महिलाओं की स्थिति लगातार खराब....देखें आसपास के देशों में महिलाओं का हाल
वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की लैंगिक समानता दिखाने वाली 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रिपोर्ट में भारत 156 देशों की लिस्ट में नीचे से 17वें स्थान पर चला गया है. जिसका मतलब हुआ कि यहां महिलाओं की स्थिति लगातार खराब हो रही है. हाल ही में भारत सरकार ने मंत्रिमंडल में बदलाव किए, जिसके बाद केंद्र सरकार में महिला मंत्रियों की संख्या बढ़कर 11 हो गई. इसकी काफी तारीफ हुई और सोशल मीडिया पर सभी महिला मंत्रियों की एक-साथ ली गई तस्वीर शेयर की जाती रही.
दूसरी ओर साल 2021 में वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की लैंगिक समानता दिखाने वाली 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रिपोर्ट में भारत 156 देशों की लिस्ट में नीचे से 17वें स्थान पर चला गया. जिसका मतलब हुआ कि यहां महिलाओं की स्थिति लगातार खराब हो रही है.
इस बात को उतनी तवज्जो नहीं मिल सकी. महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है. इससे खराब प्रदर्शन सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान का रहा है जबकि बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और भूटान सभी उससे आगे निकल चुके हैं.
वहीं महिलाओं के राजनीतिक रूप से सशक्त होने की बात करें तो भारत की रैंक इस साल 51 हो चुकी है, जो पिछले साल 18 थी. यह सारी चर्चा इसलिए क्योंकि फिलहाल भारत में महिलाओं से जुड़े कुछ जरूरी कानून बनाए जा रहे हैं, जिन्हें बनाने में महिलाएं की संख्या न के बराबर है.
ज्यादातर राज्यों में कुल मतदाताओं की करीब 50% महिलाएं हैं लेकिन इन चुनावों में महिला उम्मीदवार मात्र 10 फीसदी रहीं. केरल में 9 फीसदी, असम में 7.8 फीसदी महिलाएं ही उम्मीदवार थीं जबकि तमिलनाडु, पुद्दुचेरी में करीब 11 फीसदी उम्मीदवार महिलाएं रहीं.
ऐसा नहीं है कि भारत में महिलाएं राजनीति को लेकर उदासीन हैं. केरल की कांग्रेस नेता लतिका सुभाष इस बात की मिसाल हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में टिकट न मिलने के विरोध में उन्होंने अपना मुंडन करा लिया था. एक मीडिया बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने उम्मीदवारों में महिलाओं के लिए कम से कम 20 फीसदी टिकट रिजर्व किए जाने की बात की थी. ऐसा नहीं है कि भारत के बड़े राजनीतिक दलों में महिलाओं का अभाव है लेकिन उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जाता है और पार्टी चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं देती."फायदे नहीं, नुकसान कई
जानकारों के मुताबिक फिलहाल जिस रूप में जनसंख्या नियंत्रण कानूनों को पेश किया जा रहा है, उससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर होने का डर है. इन कानूनों के लागू होने के बाद भारत के पुरुषवादी समाज में लड़के की चाहत में महिलाओं को बार-बार गर्भपात कराने पर मजबूर किया जा सकता है, जबकि पहले ही भारत में दूसरे और तीसरे बच्चे के तौर पर लड़कियों का अनुपात लगातार तेजी से गिर रहा है.
कविता कृष्णन कहती हैं, 'यूपी सरकार की ओर से बताया गया है कि बिल पर 8,500 लोगों ने प्रतिक्रिया दी है, जिनमें से सिर्फ 0.5 फीसदी ही इसके खिलाफ हैं. मैं मान लेती हूं कि प्रतिक्रिया देने वालों में महिलाएं भी शामिल होगीं लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं कि कानून लागू होने पर उनपर बुरा असर नहीं होगा. हम अंदाजा लगा सकते हैं कि जब भारत में घर के फैसले लेने में महिलाओं का योगदान बेहद कम है, तो गर्भधारण और गर्भपात जैसे अहम फैसलों में उनकी कितनी सुनी जाएगी.'
जानकार यह भी मानते हैं कि इस कानून का सबसे बुरा असर समाज में हाशिए पर पड़ी महिलाओं को झेलना होगा और यह राजनीति में उनके दखल को बढ़ाने के बजाए कम करने का काम करेगा. पिछले कुछ सालों से भारत में स्थानीय निकायों और पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही थी, इन कानूनों से उस पर भी बुरा असर होने का डर बन गया है.नये कानूनों के मुताबिक 15-49 की उम्र की महिलाओं को अगर तीसरा बच्चा पैदा होता है, तो न सिर्फ उनकी राजनीतिक भागीदारी बल्कि सामाजिक सुरक्षा, जैसे सब्सिडी आदि भी छीन ली जाएगी.
भारत
अब तक बाजार में दुकानों पर काम करना पुरुषों का काम समझा जाता था, लेकिन अब महिलाएं गैर पारंपरिक क्षेत्रों में काम करने लगी हैं. इसके बावजूद समाज में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और अपराध बने हुए हैं. कुछ समय पहले ही भारत में #MeToo कैंपेन शुरू हुआ था. इस कैंपेन में कई प्रभावशाली महिलाओं से लेकर आम औरतों ने अपने साथ हुए यौन शोषण की कहानी बयान की थी.
पाकिस्तान
पाकिस्तान में महिलाओं को धीरे धीरे पहले से ज्यादा आजादी मिलने लगी है. देश के कराची शहर में औरतों ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2019 के मौके पर #AuratAzadiMarch नारे के साथ रैली निकाली. महिलाएं अब अपने अधिकारों को लेकर काफी जागरुक हुई हैं.
अफगानिस्तान
2001 में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान में किए गए दखल से लगने लगा था कि देश में महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी. लेकिन हाल की राजनीतिक हलचलों को देखकर लगता है कि अफगानिस्तान की सरकार में एक बार फिर तालिबान का दखल हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो देश में महिलाओं की स्थिति में शायद ही कोई सुधार हो. शिक्षा से लेकर काम करने के अधिकारों को हासिल करने में उन्हें बहुत मुश्किलें आएंगी.
बांग्लादेश
पिछले दो दशकों से लगातार बांग्लादेश की कमान किसी महिला नेता के पास ही रही है. देश का प्रधानमंत्री पद एक महिला ही संभाल रही है. देश में महिला अधिकारों को लेकर कुछ सुधार तो हुए हैं लेकिन अब भी कार्यस्थल पर उनकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है. साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाएं पिछड़ी हुई हैं.
श्रीलंका
श्रीलंका की महिलाएं अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं. महिलाओं की सामाजिक स्थिति कुछ हद तक परिवारों की आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर करती है. कुछ लड़कियां जल्दी काम करना शुरू कर देती हैं तो वहीं कुछ लंबे समय तक पढ़ती हैं. दक्षिण एशिया में श्रीलंका ही एक ऐसा देश है, जहां की महिलाओं के पास स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी अच्छी सुविधाएं हैं.
ईरान
आज ईरान की महिलाओं की अपनी एक फुटबॉल टीम है. लेकिन अब भी देश की महिलाओं के लिए आजादी और सशक्तिकरण की लड़ाई खत्म नहीं हुई है. हेडस्कार्फ लगाने की प्रथा के खिलाफ खड़ी हुई लड़कियों का समर्थन कर रही एक वकील नसरीन सौतुदेह को ईरान में पांच साल कैद की सजा हुई है. ईरान में महिलाओं के लिए हेडस्कार्फ लगाना अनिवार्य है.
चीन
चीन की आर्थिक वृद्धि ने देश में महिलाओं की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार किया है. लेकिन अब भी समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव बरकरार है. इसी भेदभाव के चलते आज चीन का सेक्स अनुपात गड़बड़ा गया है. चीन में भी महिलाओं की स्थिति शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है.