
वीर क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह जी के पुण्यतिथि पर किया जायेगा "जबर वीर मड़ई मेला" कार्यक्रम का आयोजन
देश के सैकड़ों सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान का नतीजा है कि आज हम स्वतंत्र हैं. देश की आजादी के लिए अपनी जान देने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है, जिन्होंने अंग्रेजों के समर्थक का गोदाम लूट सारा अनाज गरीबों में बंटवा दिया था. वे पांच सौ आदिवासियों की फौज बना अंग्रेजी सेना से भिड़ गए थे, जिसके बाद अंग्रेजों ने बीच चौराहे पर उन्हें तोप से उड़ा दिया था.
उनकी शहादत स्थल आज रायपुर का ह्रदय स्थल “जय स्तंभ चौक” के नाम से जाना जाता है और सालों से शहर की विभिन्न गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है.
छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद कहलाने वाले शहीद वीर नारायण सिंह के नाम से आज कई स्मारक, विद्यालय और महाविद्यालय है.
शहीद वीर नारायण सिंह की एक कांस्य मूर्ति का अनावरण बसना नगर के मुख्य चौराहे पर 10 दिसंबर 2017 को शहीद दिवस पर किया गया. शहीद वीर नारायण सिंह की प्रतिमा के इस अनावरण पर हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.
अब इस वर्ष शहीद वीरनारायण सिंह जी के पुण्यतिथि पर 10 दिसम्बर को इस प्रतिमा का 1 वर्ष पूर्ण होने जा रहा है. और छत्तीसगढ़ के वीर क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह जी के इस पुण्यतिथि पर "जबर वीर मड़ई मेला" कार्यक्रम का आयोजन बसना में किया जा रहा है.
कौन थे शहीद वीर नारायण सिंह?
वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के हर हुआ था. वे बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे, उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों तथा भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया.
इसके बाद भी बिंझवार आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामसाय का सोनाखान क्षेत्र में दबदबा बना रहा, जिसके चलते अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी. देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी. पिता की मृत्यु के बाद 1830 में वे सोनाखान के जमींदार बने.
लोगों के प्रिय नायक थे वीर नारायण
स्वभाव से परोपकारी, न्यायप्रिय तथा कर्मठ वीर नारायण जल्द ही लोगों के प्रिय जननायक बन गए. 1854 में अंग्रेजों ने नए ढंग से टकोली लागू की, इसे जनविरोधी बताते हुए वीर नारायण सिंह ने इसका भरसक विरोध किया. इससे रायपुर के तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट उनके घोर विरोधी हो गए.
गोदाम के ताले खोल गरीबों में बंटवा दिया था अन्न
1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा था, अकाल और अंग्रेजों द्वारा लागू किए कानून के कारण प्रांत वासी भुखमरी का शिकार हो रहे थे. कसडोल के व्यापारी माखन का गोदाम अन्न से भरा था. वीर नारायण ने उससे अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया लेकिन वह तैयार नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने माखन के गोदाम के ताले तुड़वा दिए और अनाज निकाल ग्रामीणों में बंटवा दिया. उनके इस कदम से नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 में संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया. 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया और समर में शामिल हो गए. उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ बगावत करने की ठान ली थी.
लोगों को अत्याचार से बचाने किया समर्पण
अगस्त 1857 में कुछ सैनिकों और समर्थकों की मदद से वीर नारायण जेल से भाग निकले और अपने गांव सोनाखान पहुंच गए. वहां उन्होंने 500 बंदूकधारियों की सेना बनाई और अंग्रेजी सैनिकों से मुठभेड़ की.
इस बगावत से बौखलाई अंग्रेज सरकार ने जनता पर अत्याचार बढ़ा दिए. अपने लोगों को बचाने के लिए उन्होंने समर्पण कर दिया जिसके बाद उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. 10 दिसंबर 1857 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरेआम तोप से उड़ा दिया.
पोस्टल स्टाम्प वीर नारायण सिंह के नाम
शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 130वीं बरसी पर 1987 में सरकार ने 60 पैसे का स्टाम्प जारी किया, जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया.
इनके नाम है देश का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम
रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण साल 2008 में करवाया.
शहीद समारोह के लिए 5 लाख मिले सोनाखान को
इस वर्ष अमर शहीद वीर नारायण सिंह की जन्म स्थली सोनाखान में श्रद्धांजलि कार्यक्रम के लिए राज्य सरकार ने 5 लाख रुपए का आवंटन जारी किया है.