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बसना : पति की दीर्घायु एवं घर परिवार में सुख, समृद्धि व शांति हेतु सुहागिनों ने रखा व्रत

बसना नगर सहित ग्रामीण अंचल में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सुहागिन महिलाओं ने पति की दीर्घायु, घर परिवार में सुख, समृद्धि एवं शांति के लिए बिना बिना अन्न-जल ग्रहण किये वट सावित्री का व्रत किया। इस दौरान मंदिरों, तालाबों, सार्वजनिक जगहों में सामूहिक रूप सती सावित्री की कथा भी सुनी। बसना नगर सहित पिरदा, आरंगी, भंवरपुर, गढ़फुलझर, सलडीह, सिंघनपुर, भूकेल, बरोली, गुढ़ियारी, बड़े साजापाली क्षेत्र के सभी गांवो में अमावस्या पर वट सावित्री व्रत की घरों में तैयारियां सुबह से ही शुरू हो गई। महिलाओं ने घरों में पूजा स्थलों की साफ-सफाई, देवी-देवताओं की मूर्तियों को स्नान कराने के बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाए। फूलों की माला, बिजली की झालरों आदि से पूजा स्थलों को काफी खूबसूरत ढंग से सजाया। इसके बाद घरों में पूजन की तैयारियां शुरु किया।

 

महिलाओं ने पूजन के लिए तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान तैयार किए। पूजन की सारी तैयारियां पूरी हाने पर पूजा की थाली के साथ पारंपरिक ढंग से पूजा-अर्चना करने के लिए महिलाएं तालाब किनारे, मंदिरों के पास के वट वृक्ष के नीचे एकत्र हुई। वट वृक्ष की सभी ने विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की। वट वृक्ष पर कच्चे सूत का धागा लपेटते हुए उसके चारों ओर परिक्रमा कर अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। इस दौरान वट वृक्ष के नीचे बैठकर महिलाओं ने वट सावित्री व्रत की कथा सुनी। कुछ महिलाओं ने वट वृक्ष के पत्तों का घरों पर ही विधि-विधान के साथ पूजन किया। इसके बाद वायना निकालकर घर की बुजुर्ग महिला को दिया और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद मंदिर में जाकर अपने सुहाग की दीर्घायु की ईश्वर से कामना कर विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की। वही बरपेलाड़ीह में महाराज शंकर पति महिलाओं को सती सावित्री व्रत की कथा सुनाते हुए बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।

 

इस त्योहार को लेकर ये मान्यता है कि इस व्रत को रखने से परिवार के लोगों को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है। बहुत से लोग ये भी मानते हैं कि इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली मानी जाती है। वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है।




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