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नए एंटी-डम्पिंग शुल्क लगने से डाउनस्ट्रीम एल्युमीनियम कम्पनियों को लाभ; उत्पादकों ने बजट 2025 में ऐसे और कदम उठाने की मांग की

सोलर पैनलों के एक मुख्य कम्पोनेंट पर एंटी-डम्पिंग शुल्क लगाया गया

एल्युमीनियम निर्माताओं का कहना है कि ऐसे शुल्क (ड्यूटी) स्वदेशी उत्पादन क्षमता में नए निवेश को बढ़ावा देते हैं।


भारत सरकार ने सोलर पैनल और मॉड्यूल के लिए चीन से आने वाले एनोडाइज्ड एल्युमीनियम फ्रेम पर हाल में एंटी-डम्पिंग ड्यूटी लगाने का निर्णय लिया है। सरकार के इस कदम का एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएआई) ने स्वागत किया है, क्योंकि इससे डाउनस्ट्रीम एल्युमीनियम उद्योग के लिए एक बड़े स्वदेशी बाजार में पैर जमाना आसान होगा।

आगामी बजट 2025 से इस उद्योग की मुख्य अपेक्षा आयात से मजबूत सुरक्षा है, क्योंकि इससे घरेलू बाजार पर पकड़ मजबूत होगी। भारत एल्युमीनियम सेक्टर में अधिक आत्मनिर्भर बनेगा। नए निवेश बढ़ने से रोजगार बढ़ने की भी उम्मीद है। एमएसएमई का विकास होगा और दूरदराज के क्षेत्रों को सामाजिक-आर्थिक मुख्यधारा से जुड़ने का बड़ा लाभ होगा।

घरेलू एल्युमीनियम उद्योग, जो प्राथमिक और डाउनस्ट्रीम उत्पादों के रूप में बड़े पैमाने पर आयात में बढ़ोतरी के कारण प्रभावित हो रहा है, जिसमें ज्यादातर विदेशी स्क्रैप शामिल है, ने इस मुद्दे पर सरकार को कई बार ज्ञापन सौंपे हैं। उन्होंने कम गुणवत्ता के स्क्रैप के बढ़ते आयात पर मजबूत लगाम लगाने के लिए बार-बार यह मांग की है कि प्राथमिक और डाउनस्ट्रीम एल्युमीनियम उत्पादों पर आयात शुल्क 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत किया जाए और एल्युमीनियम स्क्रैप पर 7.5 प्रतिशत का एक समान शुल्क लगाया जाए।
अत्यधिक आयात से हो रही समस्याओं का संज्ञान लेते हुए वित्त मंत्रालय ने एंटी-डम्पिंग ड्यूटी की घोषणा की है। इस अधिसूचना में बताया गया है कि ‘‘कथित देश से कथित वस्तुओं की डम्पिंग से घरेलू उद्योग लगाने की गति वास्तविक रूप में धीमी पड़ रही है’’।

इस अधिसूचना से लागू एंटी-डम्पिंग ड्यूटी अगले पांच साल तक लागू रहेगी। इस बारे में एल्युमीनियम उत्पादकों का कहना है कि स्वदेशी उद्योग को बचाने और बढ़ती मांग के अनुसार उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए प्राथमिक और स्क्रैप एल्युमीनियम के बेलगाम आयात से सुरक्षा अति आवश्यक है। गौरतलब है कि यह मांग 2030 तक 10 मिलियन टन होने की उम्मीद है।

आज भारत में कुल मांग का 54 प्रतिशत एल्युमीनियम आयात होता है। इसका अर्थ 56,291 करोड़ रुपये या भारत के कुल आयात बिल का 1 प्रतिशत प्रति वर्ष विदेशी मुद्रा के रूप में व्यय होता है। कुल एल्युमीनियम आयात का बड़ा हिस्सा स्क्रैप के रूप में चीन, मध्य पूर्व से आता है और अमेरिका और ब्रिटेन से भी तेजी से बढ़ रहा है। यह स्क्रैप अक्सर निम्न स्तरीय होता है क्योंकि गुणवत्ता के मानकों का पालन नहीं किया जाता है। स्वदेशी उद्योग को सरकार से पूरा समर्थन नहीं मिलने और ड्यूटी आर्बिट्राज के अभाव में यह आयात वित्त वर्ष 15 के 869 केटी से बढ़ कर वित्त वर्ष 25 में 1,825 केटी यानी दोगुना होने का अनुमान है।

यह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक रुझानों के विपरीत रहा है। उन्नत देशों ने एल्युमीनियम उद्योगों को रणनीतिक महत्व का संसाधन मानते हुए उसे संरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए एल्युमीनियम आयात पर अमेरिका पहले ही 10 प्रतिशत टैरिफ लगा चुका है। चीन ने तो अमेरिका से एल्युमीनियम स्क्रैप आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया है। कुछ अन्य प्रतिबंध भी लगाएं हैं। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कार्यभार संभालने के बाद कनाडा और मैक्सिको के उत्पादों पर 25 प्रतिशत शुल्क के अलावा चीन से आयात पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत शुल्क लगाने का संकल्प लिया है। दूसरी ओर भारत एल्युमीनियम स्क्रैप का सबसे बड़ा आयातक देश बन गया है। इस मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन इसके चलते घरेलू एल्युमीनियम उद्योग के विकास में बाधा आ रही है।

एंटी-डम्पिंग ड्यूटी लगाना पूरे घरेलू एल्युमीनियम उद्योग की प्रगति के लिए सकारात्मक कदम माना जा रहा है। एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘सरकार ने एंटी-डम्पिंग ड्यूटी लगा कर एल्युमीनियम उद्योग में भारत को आत्मनिर्भर बनाने और प्रतिस्पर्धा में आगे ले जाने की प्रतिबद्धता दिखाई है। आशा है घरेलू एल्युमीनियम उत्पादकों को मजबूत करने के लिए आगामी बजट में ऐसे और कदम उठाए जाएंगे। इससे हमारा उद्योग पूरी दुनिया में एनर्जी ट्रांजिशन में सहयोग देगा और बढ़ती मांग पूरी करने के लिए अतिरिक्त क्षमता में निवेश के लिए भी उत्साहित होगा।’’
एंटी-डम्पिंग ड्यूटी लगाने से देश में डाउनस्ट्रीम एल्युमीनियम का मूल्य संवर्धन होगा। ऐसे शुल्क लगाने के और भी कदम उठाए जाएं तो देश में एल्युमीनियम के आयात पर अंकुश लगेगा। घरेलू एल्युमीनियम उत्पादक, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निवेश करेंगे और ‘विकसित भारत’ अभियान में अधिक कारगर योगदान देंगे।




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