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सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना मात्र यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा: बॉम्बे हाई कोर्ट फ़ैसला ....सोशल मीडिया पर हो रहा विरोध

"मुंबई कोर्ट का आज जो फरमान आया है उससे तो यही साबित हो रहा है कि आज भी भारत में पुरुषवादी मानसिकता वाले लोग हैं और महिलाओं की बराबरी और आजादी सिर्फ कागजों तक ही रह गई हैं" ठीक इसी तरह और भी कई सारे ट्वीट और पोस्ट शेयर किये गए है बॉम्बे कोर्ट के नए फैसले के विरोध में.साथ में कटाक्ष करते हुए भी सोशल मीडिया उसेर्स ने कोई कोताही नहीं बरती है उन्होंने सीधे बॉम्बे हिघ्कोर्ट को निशाना लगाते हुए यह भी ट्वीट किए है की  यूज़र वैष्णवी लिखती हैं, "मैं बॉम्बे हाई कोर्ट से पूछना चाहती हूं कि अगर मैं किसी को ग्लव्स पहनकर या जूते से मारूं तो वह यौन उत्पीड़न के तहत नहीं आएगा? शर्मनाक."

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने हालिया फै़सले में यौन उत्पीड़न को परिभाषित करते हुए कहा है कि वक्षस्थल को जबरन छू लेने मात्र को यौन उत्पीड़न की संज्ञा नहीं दी जा सकती.अदालत ने ये फ़ैसला सुनाते हुए एक नाबालिग़ बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी ठहराए गए शख़्स की सज़ा में बदलाव कर दिया है.अससे पहले नागपुर सत्र न्यायालय ने आईपीसी सेक्शन 354 के तहत व्यक्ति को एक साल की और पोक्सो के तहत तीन साल की सज़ा सुनाई थी. ये दोनों सजद़ाए एक साथ दी जानी थीं. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद तीन साल की सजा वाला फ़ैसला अब निष्क्रिय हो गया है.

कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद से सोशल मीडिया से लेकर क़ानून को जानने वालों के बीच फ़ैसले का विरोध जारी है.बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फ़ैसले में लिखा है, "सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना मात्र यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा, इसके लिए यौन मंशा के साथ स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना ज़रूरी है."बेंच ने कहा है कि "सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना (ग्रोपिंग) यौन उत्पीड़न के तहत नहीं माना जाएगा."महाराष्ट्र सरकार के पूर्व स्टैंडिंग काउंसिल निशांत कत्नेसवरकर मानते हैं कि इस संदर्भ और केस में हाई कोर्ट का यह आदेश ग़लत और अस्वीकार्य है. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए.



वह कहते हैं, "बॉम्बे हाईकोर्ट ने जो तर्क दिया है, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. पोक्सो क़ानून के प्रावधान कहीं भी निर्वस्त्र करने की बात नहीं करते हैं. लेकिन हाई कोर्ट ने ये तर्क दे दिया है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है."उन्होंने यहां तक कहा कि महाराष्ट्र सरकार को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए.क़ानूनी मामलों को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहंती ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि व्यक्ति ने नागपुर के अतिरिक्त संयुक्त सहायक सत्र न्यायाधीश के उस फ़ैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता की तमाम धाराओं और सेक्शन 354 के तहत उन्हें दोषी ठहराया गया था.दोषी पाए गए व्यक्ति ने लालच देकर 12 साल की एक लड़की को अपने घर बुलाया और जबरन उसके वक्षस्थल को छूने और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की. उन्होंने यहां तक कहा कि महाराष्ट्र सरकार को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए. जस्टिस गनेडीवाला ने ये फ़ैसला 19 जनवरी को सुनाया था लेकिन रविवार शाम को इस फ़ैसले की ख़बर फैलने के बाद से सोशल मीडिया पर इसका विरोध जारी है.वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस फ़ैसले को तार्किक ठहरा रहे हैं.ट्विटर यूज़र अभय गुप्ता लिखते हैं, "इस फ़ैसले के लिए जज का सम्मान करें. ये फ़ैसला कई बेगुनाह लोगों को झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों से बचा लेगा. हाँ, नारीवाद पर मानवता की जीत हुई है. और जज भी एक महिला हैं.




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