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स्व-सहायता समूह की महिलाओं के रोजगार का जरिया बना ढेंकी चावल

आज के मशीन युग में खाद्य प्रसंस्करण का कार्य आसान जरूर हो गया है, लेकिन उसकी पोषक गुणवत्ता प्रभावित हुई है। ढेंकी से परंपरागत रूप से प्रसंस्कृत चावल जहां पोषक गुणों से भरपूर है वहीं ढेंकी पद्धति रोजगार का जरिया भी बना है। आज की पीढ़ी को शायद पता नही होगा कि ढेंकी क्या होता है। ढेंकी धान कूटने के लिए लकड़ी का बना एक परंपरागत औजार है, जिसे स्थाई रूप किसी स्थान विषेश पर स्थापित किया जाता है। ढेंकी के अग्रभाग में लोहा युक्त मूसर लगा रहता है जिससे धान की कुटाई होती है तथा पिछले भाग को पैर से चलाते है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृण करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहें है। इसी कड़ी में ढेंकी से चावल प्रसंस्करण भी महिलाओं के लिए रोजगार का साधन बना है। मुख्यमंत्री की पहल पर मरवाही विकासखंड के ग्राम दानीकुण्ड़ी में वन-धन महिला स्व-सहाहयता समूह की महिलाओं द्वारा पुराने पद्धति ढेंकी को अपनाते हुए एक नई दिशा में काम कर रही हैं और अच्छी खासी कमाई भी कर रही है।

ढेंकी से चावल प्रसंस्कृत कर महिलायें 15 से 25 रूपए प्रति किलोग्राम तक कमाई कर रही हैं । एक दिन में प्रति महिलायें 20 से 30 किलोग्राम तक प्रसंस्कृत कर ले रही हैं जिससे वे रोजना 300 से 500 रूपए तक कमा ले रहीं हैं। समूह की महिलाए स्थानीय किसानों से 35 से 40 रूपए प्रति किलो की दर से धान खरीदती है। प्रसंकृत चावल को 110 से 130 रूपए प्रति किलो की दर से दानीकुंडी के अलावा विविध सुविधा सह-मूल्य संवर्धन केन्द्र बिलासपुर, रायपुर, मनेन्द्रगढ, कोरबा, बिजुरी आदि स्थानों पर विक्रय किया जाता है।
ढेंकी से धान की कुटाई से हानिकारक रासायन अलग हो जाते हैं और चावल पोषक गुणो से भरपूर होता है। ढेंकी द्वारा कुटाई से प्रोटीन अपने मूल स्तर से लगभग दस से बारह प्रतिशत पर सुरक्षित रहती है। साथ ही फाइबर विटामिन, कैल्शियम, आयरन, थायमीन, मिनरल्स, एमीनो एसिड, टोकाफिरोल, टोकोट्रिनोल, ऑरिजेनाल आदि पोषक तत्व यथावत उपस्थित रहते हैं, जबकी मिलिंग प्रक्रिया में पालिस होने से इनके अधिकांश भाग का क्षरण हो जाता है, केवल कार्बाेहाइड्रेड, वसा आदि ही शेष रहतें हैं। ढेंकी प्रसंस्कृत चावल में माइकोन्यूट्रिएंटस की उपलब्धता अधिक रहती है, जो कि सेहत के लिये स्वास्थ्यवर्धक होता है।




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