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जिला अस्पताल में छाया अंधेरा, मरीज से ज्यादा अस्पताल बीमार...

गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के गठन को लगभग 2 साल से ज्यादा समय हो गया है . मगर स्वास्थ व्यवस्था में कोई बदलाव नजर नही आता है . लगभग 4 लाख की जनसंख्या वाले इस जिले में जिला अस्पताल की दुर्दशा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ लाइट चले जाने के बाद जनरेटर की व्यवस्था तक नही है लाइट जाने के बाद पूरा जिला अस्पताल अंधेरे में डूब जाता है जहाँ डॉक्टर मोबाइल की रोशनी में मरीजो का इलाज करते नजर आते है

एक तरफ जहां 50 बिस्तर के मातृ शिशु अस्पताल को जिला अस्पताल में बदल तो दिया गया पर आज भी मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा के लाभ के लिए प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर काटते नजर आते है .इसके साथ ही डॉक्टरों की कमी यहां के लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। स्थिति ये है कि जिला चिकित्सालय खुद ही बीमार हो चुका है ऐसा लगता है कि मरीजों से ज्यादा इलाज की जरूरत अस्पताल को है .

महत्वपूर्ण बात यह है कि करोड़ो की लागत से बना जिला अस्पताल जहाँ लाइट जाने के बाद यह अस्पताल अंधेरे में डूब जाता है . जबकि उक्त जिला अस्पताल जिला कलेक्टर भवन के सामने है जहाँ जिला प्रशासन के तमाम आला अधिकारी बैठते है मगर इसके बाद भी जिला अस्पताल का अंधेरे में डूबा यह मंजर इन आला अधिकारियों पर तमाम सवाल खड़ा करता है . ऐसे में अगर ऑपरेशन या अन्य किसी बीमारी के इलाज के दौरान लाइट चली जाती है और मरीज के साथ कोई अप्रिय घटना होती है तो इसकी जवाबदेही आखिर किसकी होगी वही उक्त मामले में जब सिविल सर्जन कौशल सिंह से बात करनी चाही गई तो उन्होंने जनरेटर होने की बात कही साथ ही अन्य समुचित व्यवस्था होने की बात भी कहते नजर आ रहे है मग़र इस अंधेरे में डूबे जिला अस्पताल का मंजर देख अंदाजा लगाया जा सकता है की मरीजो के इलाज के लिए बना अस्पताल खुद बीमार पड़ा नजर आता है जिसके इलाज के लिए न तो कोई जिम्मेदारी लेना चाहता है ना इसकी किसी को सुध है। देखना होगा कि जिम्मेदार अधिकारी के आंख में रौशनी कब आती है और वह जिला अस्पताल में लाईट की समुचित व्यवस्था करेंगे ।।




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