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धन-वैभव-ऐश्वर्य, सांसारिक सुख की कामना मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की भक्ति बिना मूल्यवान नहीं हो सकता - परमव्यास पं. अनिलकृष्ण शास्त्री

विपत्ति के समय भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। भगवतभक्ति बिना सांसारिक मोह माया में लिप्त प्राणी का उद्धार नहीं हो सकता
गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिले के सकोला(कोटमी)तहसील में सकोला निवासी पाण्डेय परिवार द्वारा नवदिवसीय श्रीमद् बाल्मीकि रामायण संगीतमय श्रीराम कथा का आयोजन किया गया है।इस अमृतमयी कथा का रसपान करने क्षेत्र के नगरवासी,ग्रामवासी प्रतिदिन शामिल हो रहे हैं।कथावाचक पंडित अनिलकृष्ण शास्त्री व्यास जी महाराज दिल्ली महरौली से पधारकर समस्त श्रोताओं को ज्ञानरूपी गंगा में पवित्र स्नान करा रहे हैं वहीं क्षेत्र की महिलाएं,बच्चे वृद्धजन भगवान की भक्ति में सराबोर होते हुए पवित्र कथा और भगवान की जीवन्त झांकियों का भरपूर आनन्द उठा रहे हैं।
संगीतमय श्रीराम कथा के मुख्य यजमान शिवकली पाण्डेय हरिवंश पाण्डेय हैं इस आयोजन की सफलता हेतु शंकराचार्य शुक्ला, विजय तिवारी पूर्ण समर्पण भाव से क्षेत्रवासियों की सेवासम्मान व व्यवस्था में लगे हुये हैं।आयोजक परिवार को इस कार्यक्रम में स्थानीय मित्रजनों ब्राह्मण समाज एवं अन्य व्यक्तियों का भरपूर सहयोग मिल रहा है।श्रीराम कथा के चतुर्थ दिवस में श्रापवश पाषाण हुईं ऋषि गौतम पत्नी अहिल्या उद्धार वर्णन, आततायी राक्षसों से ऋषि मुनियों की रक्षा एवं विश्वामित्र मुनि के साथ प्रभु श्रीराम मिथिलानगर राजा जनक जी के यहाँ पहुँचकर क्षत्रिय राजघराने रघुकुल का परिचय देने का चरित्र वर्णन तथा जनकनंदिनी सीता माता जी के साथ मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का परिणय संस्कार व लघुभ्राता लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न सहित क्रमशः विवाह उत्सव का पावन कथा जीवन्त झांकियों के साथ वर्णन किया गया इस बीच सकोला तिराहे से कार्यक्रम स्थल तक भगवान श्रीराम की बारात बैण्ड बाजे व आतिशबाजी के साथ निकाली गई जिसमें स्थानीय भक्तजन बाराती भक्ति में झूमते नाचते नजर आये वहीं सोनी परिसर मेडिकल स्टोर के सामने बारातियों का हर्ष उल्लास के साथ शर्बत पिलाकर स्वागत किया गया।

परमव्यास पंडित अनिलकृष्ण शास्त्री ने श्रीरामकथा श्रवण कराते हुये व्यासपीठ से कहा कि विपत्ति के समय भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। विपत्ति आने पर व्यक्ति अखिलब्रह्मांड नायक जगदाधार अपने इष्टदेव भगवान को याद करता है और वही जीव सांसारिक सुख सुविधाओं के माया मोह में पड़कर भगवत भक्ति राम नाम सुमिरन को भूल जाता है।भगवतभक्ति के बिना सांसारिक मोह माया में लिप्त प्राणी का उद्धार नहीं हो सकता है।"कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई,जब तव सुमिरन भजन न होई" चौपाई की विस्तृत व्याख्या महाराज श्री द्वारा की गई।व्यास जी ने कहा कि राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जब मिथिलापुरी के वन उपवन देखने के लिए निकले तो उपवन में निर्जन स्थान को देखकर राम ने कहा यह स्थान तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते? विश्वामित्र ने सारा वृत्तांत सुनाकर कहा यह कभीमहर्षि गौतम का आश्रम था।बिना विचार किये क्रोधवश अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया जिसके कारण शापित होकर आज अहिल्या पाषाण हो गई है जब राम इस वन में आयेंगे तभी उनकी कृपा चरण स्पर्श से अहिल्या का उद्धार होगा।भगवान राम ने जैसे ही अपने चरणों से शिला पर स्पर्श करते हैं देखते ही देखते वह शिला एक सुंदर स्त्री में बदल जाती है और प्रभु श्री राम का वंदन करती है इस प्रकार अहिल्या का शिला से उद्धार हो जाता है।व्यासपीठ से श्रीराम और सीता विवाहोत्सव का वर्णन करते हुए आचार्य ने कहा कि बचपन में जब सीता जी ने खेल ही खेल में शिव धनुष को उठा लिया तो सभी इस दृश्य को देखकर अचंभित रह जाते हैं जिस धनुष को कोई भी साधारण व्यक्ति हिला नहीं पाया था सीता जैसी छोटी सी बालिका ने उसे आसानी से उठा लिया।उस क्षण राजा जनक निश्चय करते हैं सीता जी का विवाह उसी से करेंगे जो इस धनुष को उठा सकने का सामर्थ्य रखता हो।सीता माता के विवाह योग्य होने पर स्वयंवर की घोषणा हुई।सभी राजा एक एक करके अपने पराक्रम दिखाने उस धनुष को उठाने के लिए आते है परन्तु शिव धनुष को कोई राजा नहीं उठा पाता और न ही प्रत्यंचा चढ़ा पाता है।यह स्थिति देखकर राजा जनक निराश होकर कठोर वचन बोलते हैं तब अपने गुरु की आज्ञा को पाकर भगवान राम ने शिव धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाने लगते हैं और धनुष टूट जाता है।भगवान राम और सीता विवाह बंधन में बंध जाते हैं क्रम से श्रीराम के लघुभ्राता लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न का विवाह बंधन भी पूर्ण हो जाता है।व्यास जी ने कहा भगवान राम की महत्ता व्यापक है धन-वैभव-ऐश्वर्य,सांसारिक सुख की कामना मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की भक्ति के बिना मूल्यवान नहीं हो सकता।
भगवान राम एक आदर्श पुरुष हैं श्रीराम के सोलह गुण मर्यादापुरुषोत्तम होने को चरितार्थ करते हैं।वाल्मीकि मुनि ने नारद जी से प्रश्न किया कि इस लोक में ऐसा कौन सा मनुष्य है जो गुणवान,वीरता से परिपूर्ण,धर्मज्ञ,कृतज्ञ,सत्यवादीदृढ़व्रत,सदाचारी,सब प्राणियों का हितकारक,विद्वान,समर्थ, प्रियदर्शन,धैर्यवान,जितक्रोध,कान्तियुक्त,अनसूयक ईर्ष्या को दूर रखने वाला हो और जिसके रुष्ट होने पर युद्ध में देवता भी भयभीत हो जाते हैं।"आत्मवान को जितक्रोधो द्युतिमान कोअनसूयकः।कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे।।"नारद मुनि ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न भगवान श्रीराम में ये समस्त गुण समाहित हैं।




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