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कलाकारों की साधना ऋतु है बसंत : डॉ अनुसुइया
वसंत ऋतु लेखकों को लिखने के लिए अकूत भंडार सौंपती है: डॉ अनुसुइया
वाग्देवी सरस्वती और वसंत पर्व : पुराख्यान और परम्परा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं काव्यपाठ सम्पन्न
उपरोक्त उद्गार प्रो डॉ अनुसुइया अग्रवाल डी लिट् प्राचार्य स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालय महासमुंद प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन के तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं काव्यपाठ का आयोजन के अवसर पर बसंत पंचमी के दिन कर रही थी। यह संगोष्ठी वाग्देवी सरस्वती और वसंत पर्व : पुराख्यान और परम्परा पर केंद्रित थी। संगोष्ठी में विशेष वक्ता के रूप में अपना मंतव्य देते हुए डॉ अनुसुइया ने कहा कि पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मां शारदे को वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी तभी से इस समूचे भारत में वसंत पंचमी के दिन विद्या की अराध्या देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी ।
बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव का दिवस भी कहा जाता है हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही तो हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की आराधना हर वह व्यक्ति करता है जिसे शिक्षा से प्रेम हो और जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। अपनी बात को आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा कि कलाकारों का तो कहना ही क्या? कलाकारों की साधना ऋतु और पर्व है बसंत। जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।वसंत ऋतु लेखकों को लिखने के लिए अकूत भंडार सौंपती है।
मुख्य अतिथि, डॉ. हरि सिंह पाल महामंत्री नागरी लिपि परिषद्, दिल्ली ने कहा, वसंत ऋतु से संबंधित जानकारी को हमें नई पीढ़ी तक अवश्य पहुंचना चाहिए। वसंत ऋतु जीवन जीने की ऊर्जा प्रदान करती है।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक नार्वे ने, वसन्त ऋतु के आगमन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अपनी कविता सुनाई।
प्राध्यापक डॉ. प्रसन्ना कुमारी केरल ने कहा कि सरस्वती की महिमा दक्षिण भारत के सभी प्रान्तों में है। उनके आशीर्वाद से वहां पर अक्षर ज्ञान की शुरुआत की जाती है।
कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव पुणे, ने आंध्र प्रदेश के बासर में स्थित सरस्वती मंदिर की विशेषताएं बताते हुए कहा, वहाँ के खम्भों से संगीत के स्वरों की आवाज सुनाई देती है।
प्रो शैलेंद्र शर्मा विभाग अध्यक्ष हिंदी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहा कि इस चराचर जगत को लय, गति, ज्ञान, मेधा देने का कार्य सरस्वती देवी के माध्यम से संपन्न हुआ है।
डॉ.प्रभु चौधरी, कोषाध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा कि मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों में वाग्देवी सरस्वती एवं वसन्त से जुड़े अनेक लोकाचार और रीति रिवाज प्रचलित हैं।
डॉ रश्मि चौबे राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कविता सुनाई, यहां मौन निमंत्रण देता, देखो सखी आया वसंत।
डॉ. जया सिंह रायपुर ने कहा कि सरस्वती सर्वज्ञान मय स्वरूप है। उनकी माला एकाग्रता का प्रतीक होती है। वीणा जीवन संगीत का प्रतीक है। कमल रूपी आसान संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक है। हंस परिशुद्धि का प्रतीक है। वे सृजन का संदेश देती हैं।
डॉ. अजय सूर्यवंशी ने अटल बिहारी वाजपेयी का गीत, गीत नया गाता हूं सुनाया।
अनीता गौतम, महाराष्ट्र ने गीत प्रस्तुत किया, विनय करूं मां शारदे कर को दोनों जोड़। बल बुद्धि भंडार भरे, जीवन कर अनमोल।
डॉ धर्मेंद्र वर्मा, उज्जैन ने अपनी कविता सुनाई। डॉ नेत्रा रावणकर उज्जैन ने गीत प्रस्तुत किया बसंत आया वसंत आया।
कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. श्वेता मिश्रा, बरेली की सरस्वती वंदना से हुआ।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. श्वेता मिश्रा सचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने किया। स्वागत भाषण एवं आभार डॉक्टर प्रभु चौधरी, उज्जैन ने किया। कार्यक्रम में भाग्येश, प्रीति आदि अन्य अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।
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