news-details

सारंगढ़ बस स्टैंड ट्रांसपोर्ट नगर में मूलभूत सुविधाओं का अभाव... नगर पालिका निगम की अनदेखी का दंश झेल रहा है सारंगढ़ बस स्टैंड ट्रांसपोर्ट नगर....

जिले के नगरीय निकायों में स्थित बस स्टैंड सारंगढ़ बस स्टैंड ट्रांसपोर्ट नगर की दुर्दशा ठीक नहीं होने से राहगीरों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शहर का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थान माने जाने वाले बस स्टैंडों में विभिन्न मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इन असुविधाओं का खामियाजा सीधे यात्रियों को भुगतना पड़ जाता है। जिले के नगरीय निकायों में स्थित बस स्टैंडों की दुर्दशा ठीक नहीं होने से राहगीरों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सारंगढ़ बस स्टैंड ट्रांसपोर्ट नगर बस स्टैंड की स्थिति दिनों दिन बद से बदतर होती जा रही है। 

चारो तरफ गंदगी का अंबार ही इसकी पहचान बनी हुई है। यहां वर्षों पहले बने यात्री शेड जर्जर स्थिति में है, जहां जानवर अपना बसेरा बनाए रहते हैं। इतना ही नहीं यहाँ यात्रीयो के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं है , लेकिन यहां का कार्यालय भी धराशायी होने के कगार पर है, शाम ढलते ही पूरा परिसर अंधेरे में डूब जाता है। कहीं भी रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। बरसात के दिनों में तो पूरा बस पड़ाव ही कीचड़ से पट जाता है। यात्रियों को यहां पहुंचने और निकलने भी परेशानी होती है।बस स्टैंड परिसर में एक सुलभ शौचालय है। इससे यात्रियों को कुछ राहत होती है। लेकिन यहां भी स्वच्छता पर पूरा ध्यान नहीं जाता है। शौचालय में भी गन्दगी का अम्बार लगा हुआ है मजबूरी में ही लोग इसका सहारा लेते हैं। जिले के विभिन्न प्रखंडों के लिए नियमित बस का संचालन होता है।

चारों तरफ गंदगी देख परेशान हैं। यहां के कर्मी व सफाई कर्मी परिसर की स्वच्छता पर ही ध्यान नहीं दे रहे। और पानी की कोई सुविधा भी नहीं है नगर पालिका निगम को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है.

रायगढ़ सारंगढ़ बस स्टैंड में मूलभूत सुविधाओं की कमी है. यहां न बैठने की जगह है और न ही बसों को व्यवस्थित खड़े करने का इंतजाम.

यात्रियों की सुरक्षा की नहीं है परवाह

रायगढ़ सारंगढ़ बस स्टैंड ट्रांसपोर्ट नगर पर यात्रियों की सुरक्षा कहीं ना कहीं प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है. यहां से रोजाना यात्रा करने वाले हजारों यात्रियों की सुरक्षा को लेकर प्रशासनिक स्तर पर कई इंतजाम किए जाने के दावे किए गए हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है
 
इन बसों के इंतजार में खड़े यात्रियों की बैठने की व्यवस्था प्रशासन की ओर से नहीं की गई है. यहां यात्री या तो जमीन पर बैठकर बसों का इंतजार करते हैं या फिर खड़े होकर अपनी आने वाली बसों को टकटकी लगाए देखते रहते हैं. स्टैंड में अव्यवस्था का आलम मूलभूत सुविधाओं की कमी बस स्टैंड काफी बड़े परिसर में बना हुआ है, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाओं की कमी है. शौचालय की व्यवस्था मात्र बस स्टैंड के मुख्य बिल्डिंग में की गई है. इसके अलावा अन्य किसी जगह पर भी शौचालय का इंतजाम नहीं है. जिसके चलते यात्रियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 सुरक्षा पर भी ध्यान नहींसुरक्षा के नाम पर बस स्टैंड पर ना तो पुलिस के जवान तैनात रहते हैं और ना ही कोई महिला पुलिसकर्मी, हालांकि कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो बस स्टैंड में कोई बड़ी आपराधिक घटना नहीं हुई है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पुलिस विभाग बस स्टैंड की सुरक्षा को लेकर किसी तरह की रियायत बरतें. क्योंकि हादसे और घटनाएं कभी बताकर नहीं आते हैं. ऐसे में इन जगहों पर पुलिस बल की तैनाती, सुरक्षा के अन्य इंतजाम किए जाने चाहिए.

नहीं है बस मालिकों को बस के फिटनेस का ध्यान

ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हो रही निजी बस ऑपरेटरों की मनमानी से जहां निर्धारित किराए से डेढ़ से दो गुना किराया तो वसूल ही रहे हैं, वहीं यात्रियों को जानवरों की तरह ठूसा जा रहा है। इसके बावजूद भी परिवहन विभाग हो या पुलिस प्रशासन आंखों पर पट्टी बांधे सब देख रहा है। कार्रवाई न होने के कारण ऐसे बस ऑपरेटरों के हौंसले और बुलंद होते जा रहे हैं। वह नहीं केवल अधिक किराया वसूल रहे हैं बल्कि क्षमता से अधिक यात्रियों को बसों में बैठाकर दुर्घटनाओं की शंका को प्रबल कर रहे हैं। कई बसों की स्थिति कंडम हो चूकि है फिर भी बस मालिकों के आँख नहीं खुल रहे है लगता है बस मालिक किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहे है बस मालिक यात्रिओ के जान से खिलवाड़ कर रहे है वही दूसरी ओर बस मालिकों को यातायात विभाग व आर. टी. ओ की ओर से अभय दान प्राप्त है.

यात्रियों के कुछ कहने पर उनके साथ बदसलूकी बस कंडक्टर, चालक कर रहे है । इस बस में सर्वाधिक यात्री ऐसे सफर करते हैं जो कि कम पढ़े-लिखे या ग्रामीण क्षेत्र के हैं। जिन्हें परिवहन नियमों व किराया सूची की ज्यादा जानकारी भी नहीं है। इतना ही नहीं 40 सीटर बस में 125 से अधिक यात्री बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गों को खड़े-खड़े सफर करने को मजबूर हो रहे हैं.

मजबूरी में दे रहे अधिक किराया

बड़े मार्ग हो या राजमार्ग यहां तो सैकड़ों की संख्या में वाहनों दौड़ते नजर आते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के आलम यह है कि यहां इक्का-दुक्का वाहन ही संचालित होते हैं। जिसके चलते बस मालिक इन भोले-भाले यात्रियों की मजबूरी का फायदा उठाकर अधिक किराया वसूलते हैं।

न ड्रेस कोड न फास्ट एड बॉक्स

इस बस में न तो चालक ने ड्रेस कोड का पालन किया और न ही बस में फास्टेड बॉक्स रखा गया। इसके अतिरिक्त बस में अग्निशमन यंत्र भी मौजूद नहीं था। इसके बावजूद भी ऐसी बसें बेखौफ होकर ग्रामीण रूटों पर संचालित की जा रही हैं। इससे सीधा प्रतीत होता है कि इन बस ऑपरेटरों को परिवहन विभाग की मौन स्वीकृति प्रदान हैं।




अन्य सम्बंधित खबरें