
भारत की खुदरा मुद्रास्फीति पिछले छह साल में सबसे निचले स्तर पर
2024-25 में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 4.6 प्रतिशत हुई, सालाना आधार पर मार्च में 3.34 प्रतिशत की गिरावट दर्ज
परिचय
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापा जाता है और यह रोजमर्रा की वस्तुओं और सेवाओं की लागत को दर्शाता है। खुदरा मुद्रास्फीति में वित्त वर्ष 2024-25 में उल्लेखनीय रूप से 4.6प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई, जो 2018-19 के बाद से सबसे कम है। यह उपलब्धि भारतीय रिजर्व बैंक की विकास समर्थक मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता को उजागर करता है, जिसने मूल्य स्थिरता के साथ आर्थिक विस्तार को सफलतापूर्वक संतुलित किया है। उल्लेखनीय रूप से, मार्च 2025 के लिए साल-दर-साल मुद्रास्फीति दर 3.34 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई, जो फरवरी 2025 से 27 आधार अंक कम है। यह अगस्त 2019 के बाद से सबसे कम मासिक मुद्रास्फीति दर है। ये आंकड़े आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मूल्य वृद्धि को रोकने के निरंतर प्रयास को दर्शाते हैं।
इन परिणामों को प्राप्त करने में सरकार के रणनीतिक हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहे हैं। मुख्य उपायों में आवश्यक खाद्य पदार्थों के बफर स्टॉक को मजबूत करना और उन्हें समय-समय पर खुले बाजारों में जारी करना, साथ ही चावल, गेहूं का आटा, दालें और प्याज जैसी मंडी की सब्सिडी वाली खुदरा बिक्री शामिल है। महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों पर सरलीकृत आयात शुल्क, जमाखोरी को रोकने के लिए सख्त स्टॉक सीमा और आवश्यक वस्तुओं पर कम जीएसटी दरों ने कीमतों के दबाव को और कम कर दिया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत एलपीजी सहायता जैसी लक्षित सब्सिडी ने कमजोर परिवारों को बढ़ती खाद्यान्न लागत से बचाया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि कम मुद्रास्फीति का लाभ उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक क्या है?
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) समय के साथ खुदरा कीमतों के सामान्य स्तर में परिवर्तन को मापने के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों में से एक है। यह दर्शाता है कि परिवारों को भोजन, कपड़े, आवास और ईंधन जैसी वस्तुओं और सेवाओं की एक निश्चित मात्रा पर कितना खर्च करने की आवश्यकता है। भारत में, सीपीआई को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा संकलित किया जाता है और वर्तमान में आधार वर्ष 2012 का उपयोग करके इसकी गणना की जाती है। समय के साथ इस निश्चित मात्रा की लागत को ट्रैक करके सीपीआई दिखाता है कि कीमतें कैसे बढ़ती या घटती हैं, जो उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति और उनके समग्र कल्याण को प्रभावित करती हैं।
सीपीआई वस्तुओं और सेवाओं की इस निश्चित मात्रा की वर्तमान लागत की तुलना पिछली अवधि में इसकी लागत से करके मूल्य परिवर्तनों को मापता है। चूंकि इस सामग्री को मात्रा और गुणवत्ता के संदर्भ में स्थिर रखा जाता है, इसलिए सूचकांक में कोई भी परिवर्तन केवल कीमतों में परिवर्तन को दर्शाता है। जब कीमतें बढ़ती हैं, तो सीपीआई बढ़ जाती है, जो मुद्रास्फीति का संकेत देती है; जब वे गिरती हैं, तो सीपीआई घट जाती है, जो कम मुद्रास्फीति या अपस्फीति का संकेत देती है।
मूल रूप से, सीपीआई के आंकड़े श्रमिकों के जीवन यापन की लागत में परिवर्तन को ट्रैक करने के लिए विकसित किए गए थे ताकि उनकी मजदूरी को मूल्य उतार-चढ़ाव के अनुरूप समायोजित किया जा सके। हालांकि, समय के साथ, सीपीआईएक व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मैक्रोइकॉनॉमिक टूल के रूप में विकसित हुआ है। यह अब मुद्रास्फीति को लक्षित करने, मूल्य स्थिरता की निगरानी करने और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति निर्णयों का मार्गदर्शन करने के लिए एक प्रमुख मानक है। यह वास्तविक आर्थिक वृद्धि को मापने के लिए राष्ट्रीय खातों में एक अपस्फीतिकारक के रूप में भी कार्य करता है।
भारत में, सामान्य सीपीआई (सीपीआई-संयुक्त) के साथ-साथ, विभिन्न जनसंख्या समूहों को ध्यान में रखते हुए खंड-विशिष्ट सूचकांक भी प्रकाशित किए जाते हैं:
- सीपीआई (आईडब्ल्यू) - औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
- सीपीआई (एएल) - कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
- सीपीआई (आरएल) - ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
ये सूचकांक मजदूरी संशोधन, ग्रामीण नियोजन और जनसंख्या के विशिष्ट क्षेत्रों में मुद्रास्फीति के रुझान को समझने में मदद करते हैं।
मार्च 2025 के लिए मुख्य बिंदु
खाद्य मुद्रा स्फीतिः उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) पर आधारित साल-दर-साल खाद्य मुद्रास्फीति मार्च 2025 में 2.69 प्रतिशत रही, जो नवंबर 2021 के बाद सबसे कम है। यह पिछले महीने से 106 आधार अंकों की तीव्र गिरावट को दर्शाता है।
ग्रामीण खाद्य मुद्रास्फीति: 2.82प्रतिशत
शहरी खाद्य मुद्रास्फीति: 2.48प्रतिशत
गिरावट के कारक: खाद्य कीमतों में समग्र कमी का कारण सब्ज़ियां, अंडे, दालें और उत्पाद, मांस और मछली, अनाज और उत्पाद, दूध और उत्पाद जैसी प्रमुख श्रेणियों में महंगाई में गिरावट रही।
ग्रामीण मुद्रास्फीति: ग्रामीण क्षेत्रों में हेडलाइन और खाद्य मुद्रास्फीति दोनों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
फरवरी में हेडलाइन मुद्रास्फीति 3.79 प्रतिशत से गिरकर मार्च में 3.25प्रतिशत हो गई
खाद्य मुद्रास्फीति 4.06 प्रतिशत से गिरकर 2.82 प्रतिशत हो गई
शहरी मुद्रास्फीति: शहरी क्षेत्रों में हेडलाइन मुद्रास्फीति फरवरी में 3.32 प्रतिशत से बढ़कर मार्च में 3.43 प्रतिशत हो गई। हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति 3.15 प्रतिशत से घटकर 2.48 प्रतिशत हो गई।
आवास मुद्रास्फीति: शहरी क्षेत्र के लिए, आवास मुद्रास्फीति फरवरी में 2.91 प्रतिशत से थोड़ी बढ़कर मार्च 2025 में 3.03 प्रतिशत हो गई।
ईंधन और बिजली: इस श्रेणी में मुद्रास्फीति फरवरी में -1.33 प्रतिशत से बढ़कर मार्च में 1.48 प्रतिशत हो गई, जिसमें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्र शामिल हैं।
शिक्षा मुद्रास्फीति: शिक्षा से सम्बंधित मुद्रास्फीति में मामूली वृद्धि देखी गई, जो पिछले महीने के 3.83 प्रतिशत से बढ़कर 3.98 प्रतिशत हो गई।
स्वास्थ्य मुद्रास्फीति: स्वास्थ्य खंड में कीमतों में मामूली वृद्धि देखी गई, मार्च में मुद्रास्फीति 4.26 प्रतिशत रही, जबकि फरवरी में यह 4.12 प्रतिशत थी।
परिवहन और संचार: इस श्रेणी में मुद्रास्फीति फरवरी में 2.93 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2025 में बढ़कर 3.30 प्रतिशत हो गई।
सबसे अधिक मुद्रास्फीति वाली वस्तुएं: मार्च 2025 में, सबसे अधिक साल-दर-साल मुद्रास्फीति वाली शीर्ष पांच वस्तुएं नारियल तेल (56.81 प्रतिशत), नारियल (42.05 प्रतिशत), सोना (34.09 प्रतिशत), चांदी (31.57 प्रतिशत), और अंगूर (25.55 प्रतिशत) थीं।
सबसे कम मुद्रास्फीति वाली वस्तुएं: कीमतों में सबसे अधिक गिरावट वाली वस्तुएं अदरक (-38.11 प्रतिशत), टमाटर (-34.96 प्रतिशत), फूलगोभी (-25.99 प्रतिशत), जीरा (-25.86 प्रतिशत), और लहसुन (-25.22 प्रतिशत) रही।
खुदरा मुद्रास्फीति में लगातार तीसरे साल कमी आई
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति पिछले तीन वित्तीय वर्षों में लगातार नीचे की ओर चलायमान रही है, जो 2022-23 में 6.7 प्रतिशत से गिरकर 2023-24 में 5.4 प्रतिशत और 2024-25 में 4.6 प्रतिशत हो गई है। यह निरंतर कमी भारतीय रिजर्व बैंक की संतुलित मौद्रिक नीति और भारत सरकार द्वारा आपूर्ति-पक्ष की बाधाओं को कम करने और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को स्थिर करने के लिए किए गए केंद्रित हस्तक्षेपों के संयुक्त प्रभाव का परिणाम है। गिरावट की प्रवृत्ति ने जीवन-यापन की लागत के दबाव को कम करने और आर्थिक विकास के लिए अधिक स्थिर वातावरण को बढ़ावा देने में मदद की है।
उच्च कीमतों से स्थिरता तक: मुद्रास्फीति नियंत्रण का एक दशक
2009-10 और 2013-14 के बीच, भारत ने उच्च मुद्रास्फीति का एक लंबी अवधि का सामना किया, जिसमें औसत वार्षिक दर दोहरे अंकों में रही। देश भर के परिवारों ने खाद्य और ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि का खामियाजा भुगता, इन वजह से क्रय शक्ति में कमी आ गई थी और उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण माहौल बन गया था। व्यापक समय सीमा पर देखें तो, 2004-05 और 2013-14 के बीच औसत वार्षिक मुद्रास्फीति 8.2 प्रतिशत रही, जिससे पता चलता है कि यह एक खुदरा कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव वाला दशक था।
इसके विपरीत, 2015-16 से 2024-25 तक की दस साल की अवधि में मुद्रास्फीति के दबाव में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जिसमें औसत दर 5 प्रतिशत तक कम हो गई। यह महत्वपूर्ण कमी बेहतर आपूर्ति-पक्ष प्रबंधन, राजकोषीय विवेक और मुद्रास्फीति-लक्ष्यित मौद्रिक नीति के माध्यम से मूल्य स्थिरता में सुधार करने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों के निरंतर प्रयासों को दर्शाती है। उच्च मुद्रास्फीति के दौर से अधिक स्थिर मूल्य निर्धारण वातावरण में बदलाव ने उपभोक्ताओं के लिए अधिक निश्चितता प्रदान की है और दीर्घकालिक आर्थिक विकास की नींव को मजबूत किया है।
निष्कर्ष
निष्कर्ष में, हाल के वर्षों में खुदरा मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट भारत की आर्थिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह भारत सरकार द्वारा समन्वित प्रयासों की सफलता है। सक्रिय मौद्रिक नीतियों से लेकर लक्षित राजकोषीय उपायों तक, दृष्टिकोण समावेशी और प्रभावी दोनों रहा है। यह उपभोक्ताओं, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मूल्य उतार-चढ़ाव से होने वाली अस्थिरता से बचाते हैं। 2018-19 के बाद से अब तक मुद्रास्फीति अपने सबसे निचले स्तर पर है, भारत ने न केवल व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत किया है, बल्कि सतत विकास के लिए एक सक्षम वातावरण भी बनाया है। यह प्रक्षेप पथ विकास लक्ष्यों से समझौता किए बिना देश में लचीलेपन और प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए है।