
शिपिंग उद्योग के लिए नयी जलवायु नीति को मिली संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी
संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने शिपिंग उद्योग के लिए एक अहम जलवायु नीति को मंजूरी दी है, जिसमें एमिशन की कीमत तय करने के लिए एक नई प्रणाली शामिल है। इस फैसले के तहत, शिपिंग क्षेत्र से होने वाले एमिशन पर कार्बन शुल्क लगाया जाएगा, जिससे हर साल कम से कम 10 बिलियन डॉलर की राशि जुटाई जाएगी। यह राशि शिपिंग उद्योग को ग्रीन फ्यूल अपनाने के लिए दी जाएगी। इसके अलावा, एक नया "फ्यूल मानक" भी लागू किया जाएगा, जिससे फॉसिल फ्यूल का धीरे-धीरे त्याग किया जाएगा, जो वर्तमान में वैश्विक तेल की मांग का 5% हिस्सा बनाता है।
IMO के लक्ष्यों के तहत बदलाव
IMO ने 2023 में अपनी संशोधित रणनीति के तहत शिपिंग क्षेत्र में एमिशन को 2030 तक कम से कम 20% और 2050 तक नेट-जीरो करने का लक्ष्य रखा था। यह नया समझौता इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह समझौता इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
यह समझौता 2028 से लागू होगा, जिसमें सभी जहाजों को कम-कार्बन फ्यूल का उपयोग करना होगा, या फिर अतिरिक्त एमिशन पर शुल्क देना होगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई जहाज पारंपरिक फॉसिल फ्यूल (जैसे बंकर फ्यूल) का उपयोग करता है, तो उसे प्रति टन $380 का शुल्क देना होगा, जो सबसे अधिक एमिशन वाले हिस्से पर लागू होगा, और $100 प्रति टन शेष एमिशन पर।
आलोचनाएं और असंतोष
हालांकि यह समझौता एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, कई देशों और संगठनों ने इस पर आलोचना की है। प्रशांत द्वीप देशों और पर्यावरणीय संगठनों का कहना है कि यह कदम न तो पर्याप्त आय उत्पन्न करेगा, न ही यह IMO द्वारा किए गए न्यायपूर्ण और समान ट्रांज़िशन के वादे को पूरा करेगा।
क्लीन शिपिंग कोलिशन ने इस समझौते की आलोचना करते हुए कहा, "IMO ने शिपिंग क्षेत्र के लिए जलवायु संकट से निपटने का एक बड़ा अवसर खो दिया है। यह समझौता IMO के अपने 2030, 2040 और 2050 के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।"
अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है कि इस समझौते के तहत जो फ्यूल विकल्प चुने गए हैं, वे पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। विशेष रूप से, बायोफ्यूल्स जैसे पाम और सोयाबीन तेल को बढ़ावा दिया जा सकता है, जो सस्ते होने के कारण इस नीति के तहत प्राथमिक विकल्प बन सकते हैं, लेकिन इनका उत्पादन पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है।
कार्बन मूल्य निर्धारण और इसकी सीमाएं
IMO ने 2023 में यह भी तय किया था कि शिपिंग क्षेत्र के लिए एक कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली लागू की जाएगी, जो इस क्षेत्र को अपने एमिशन को नियंत्रित करने के लिए प्रेरित करेगी। यह पहली बार है जब IMO ने शिपिंग क्षेत्र के लिए एक वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि यह सिस्टम उतनी आय उत्पन्न नहीं करेगा जितनी आवश्यकता है, और यह शिपिंग क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता।
संघर्ष और समझौते में विफलता
IMO के इस समझौते में कुछ बड़े विवाद भी देखने को मिले। सऊदी अरब, UAE और अन्य पेट्रोलियम उत्पादक देशों ने इस फैसले का विरोध किया था, जबकि 63 देशों ने इसका समर्थन किया। इस विवाद के बावजूद, समझौते को एक सहमति के रूप में अपनाया गया, जिसमें पेट्रोलियम देशों के विरोध के बावजूद, अन्य देशों ने सकारात्मक वोट दिया।
इसके अतिरिक्त, इस फैसले के तहत लगभग 90% अतिरिक्त शिपिंग एमिशन को कार्बन दंड से बाहर रखा गया है, जिससे कई पर्यावरणीय संगठन इसे अपर्याप्त मान रहे हैं।
भविष्य में क्या होगा?
IMO की बैठक में यह समझौता हुआ, लेकिन इसे लेकर निराशा भी है। कई देशों का मानना है कि यह समझौता शिपिंग क्षेत्र को जलवायु संकट से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। विशेष रूप से, अफ्रीकी, कैरेबियाई और प्रशांत देशों ने जोर दिया है कि यह समझौता न्यायपूर्ण और समान संक्रमण की दिशा में एक विफलता है।
IMO ने 2023 में 2050 तक नेट-जीरो एमिशन का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस सप्ताह के समझौते के बाद यह स्पष्ट है कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए और अधिक कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
अंततः, यह समझौता शिपिंग उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हो सकता है, लेकिन इसे लेकर कई देशों और संगठनों की आलोचना इसे पूरी तरह से सफल नहीं मानती। यह सवाल अब सामने आता है कि IMO और अन्य सदस्य देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और क्या कदम उठाने होंगे, ताकि शिपिंग क्षेत्र के कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सके और एक न्यायपूर्ण और समान एनर्जी ट्रांज़िशन सुनिश्चित किया जा सके।