
सरायपाली : अक्षय तृतीया पर संस्कारों की सीख, आँगनबाड़ी केंद्रो में गुड्डा-गुड़िया विवाह का भव्य आयोजन
छत्तीसगढ़ की परम्परा अक्ति का त्यौहार आँगनबाड़ी केंद्रो मे मनाया गया, गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाने और संस्कारों की सीख : दीक्षा बारीक
सरायपाली के आँगनबाड़ी केंद्रो मे अक्षय तृतीया जिसे छत्तीसगढ मे अक्ति के नाम से जाना जाता है बड़े धूम धाम से नन्हें बच्चों द्वारा मनाया गया ।
छत्तीसगढ मे अक्ती पर्व मनाए जाने की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती है, जिस परिवार में विवाह योग्य युवक-युवती होते हैं, उनका विवाह प्राय: अक्षय तृतीया के महामुहूर्त में ही संपन्न किया जाता है। यदि युवक - युवतियों का विवाह न हो तो उस परिवार के छोटे बच्चे अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाकर खुशियां मनाते हैं। बच्चों की खुशियों में परिवार के बड़े-बुजुर्ग भी शामिल होते हैं।
पुतरा-पुतरी का नकली विवाह रचाने के जरिए बच्चों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति में निभाए जाने वाले संस्कारों की जानकारी दी जाती है ताकि बच्चे जब बड़े हो जाएं तो उन्हें पहले से संस्कारों की जानकारी हो। इन संस्कारों में तालाब से चूलमाटी लाने की रस्म, तेल, हल्दी लगाने, सिर पर मौर-मुकुट बांधने, फेरे लेने, बिदाई आदि रस्मों के बारे में सिखाया जाता है ।
वैसे तो हर छोटे-बड़े शुभ संस्कार संपन्न करने के लिए पंडित-ज्योतिषियों से मुहूर्त निकलवा जाता है, लेकिन एकमात्र अक्षय तृतीया ही ऐसी तिथि है जिसमें मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। ज्योतिष के जानकारों से सलाह लिए बिना ही इस दिन सभी संस्कार पूरे किए जा सकते हैं। इसीलिए अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त और महामुहूर्त की संज्ञा दी गई है। बिना पंचांग देखे नया व्यवसाय, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ, सगाई, विवाह जैसे संस्कार निभाए जाते हैं। खास बात यह है कि इस दिन छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप प्रत्येक घर में गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाने की परंपरा निभाई जाती है, जिसे ग्रामीण अंचलों में पुतरा-पुतरी कहा जाता है
कुंडली में मुहूर्त ना हो तो इस दिन विवाह
महामुहूर्त अक्षय तृतीया के बारे में यह प्रचलित है कि यदि विवाह योग्य युवक-युवतियों की कुंडली के हिसाब से विवाह मुहूर्त नहीं निकल रहा है। ऐसी स्थिति में अक्षय तृतीया पर विवाह करना शुभ फलदायी माना जाता है।
अन्य संस्कार
विवाह के अलावा जनेऊ संस्कार, बच्चों का मुंडन संस्कार, सगाई, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे अन्य संस्कार भी इस दिन किए जा सकते हैं।
सोना खरीदने की परंपरा
इस दिन सोना खरीदने की परंपरा भी है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर स्वर्ण, रजत, हीरा आदि धातुएं घर में लाने से वह हमेशा के लिए अक्षय हो जाती है अर्थात परिवार में सुख, समृद्धि बढ़ती है।
पर्रा, सूपा, टोकरी की खरीदारी
अक्षय तृतीया के दिन घर में पर्रा, सूपा, टोकनी, दूल्हा-दुल्हन के लिए साफा, पगड़ी, तोरण, कटार, पूजन सामग्री की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।
दान का महत्व
अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में दान करने की परंपरा निभाई जाती है। वैशाख माह में प्रचंड गर्मी पड़ती है, पशु-पक्षी, इंसान सभी गर्मी के मारे परेशान होते हैं। निर्धनों, जरूरतमंदों को राहत देने के लिए मिट्टी का घड़ा, फल, जल, अनाज, नमक, घी, शक्कर, वस्त्र, पैरों को जलन से बचाने जूता, चप्पल आदि चीजों का दान करना उत्तम माना जाता है। इस दिन किए गए दान का हजार गुणा फल मिलता है।