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420 की संख्या बहुत बदनाम है ... इसको चोरों के साथ क्यों जोड़ा जाता है, क्या आपको पता है इसका पूरा राज


आम बोलचाल की भाषा में 420 संख्या बहुत बदनाम है. इस संख्या को अकसर उन लोगों से जोड़ दिया जाता है जो ठगी करते हैं या छल-कपट के सहारे अपना काम निकालते हैं. तथ्यों में जाएं तो आपको पता चलेगा कि यह महज एक संख्या नहीं है बल्कि इसका एक पूरा कानूनी वजूद है. दरअसल संख्या 420 भारतीय दंड संहिता की एक धारा है. यह धारा वैसे शख्स पर चस्पा की जाती है जो किसी दूसरे व्यक्ति को धोखा दे, बेईमानी करे. यहां तक कि झांसे में लेकर दूसरे की संपत्ति हड़प ले.

420 संख्या को अंग्रेजी के शब्द चीटिंग cheating के साथ जोड़ा जाता है. ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में चीटिंग का अर्थ देखें तो लिखा है-Cheat also means to act in a dishonest way in order to gain an advantage, especially in a game, competition or exam. इसका हिंदी अनुवाद होगा- चीटिंग यानी धोखा का अर्थ लाभ प्राप्त करने के लिए बेईमानी से कार्य करना भी है, विशेष रूप से किसी खेल, प्रतियोगिता या परीक्षा में.

बेईमानी से जुड़ी है धारा 420
इससे साफ हो जाता है कि संख्या 420 धोखा, बेईमानी और छल-कपट से जुड़ा है जो जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव पर देखे जाते हैं. धोखा या बेईमानी छोटी हो तो लोग उसे अपने स्तर पर सुलझा लेते हैं. लेकिन मामला सिर से ऊपर निकल जाए तो भारतीय दंड संहिता के चपेटे में आ जाता है. इसी आधार पर भारत के कानून में धारा 420 का वृहद रूप रखा गया है. इस धारा के नतीजे के बारे में बताया गया है. यहां तक कि दंड का भी प्रावधान है.


क्या है अपराध
धारा 420 का कानूनी पहलू देखें तो इसके बारे में बताया गया है-कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के साथ धोखा करता है, छल करता है, बेईमानी से किसी दूसरे व्यक्ति की बहुमूल्य वस्तु या संपत्ति में परिवर्तन करता है, उसे नष्ट करता है या इस काम में किसी दूसरे की मदद करता है तो उसके खिलाफ धारा 420 लगाई जा सकती है. जब कोई व्यक्ति अपने खुद के स्वार्थ के लिए दूसरे व्यक्ति के साथ जालसाजी करके उसकी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु खुद के नाम करता है, नकली हस्ताक्षर करता है, आर्थिक या मानसिक दबाव बनाकर दूसरे की संपत्ति को अपने नाम करता है तो उसके खिलाफ धारा 420 लगाई जाती है.

7 साल की सजा का अपराध
इस अपराध के तहत अधिकतम 7 साल की सजा का प्रावधान है. साथ ही आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है जिसमें जुर्माना लगाने का प्रावधान है. कोई व्यक्ति अगर धारा 420 में दोषी पाया जाता है यह गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में आता है, इसे संज्ञेय अपराध की कैटगरी में रखा गया है और इस पर फैसला लेने की जिम्मेदारी अदालत में जज की होती है. हालांकि इस अपराध में अदालत की इजाजत से पीड़ित व्यक्ति के द्वारा समझौता कर लेने की श्रेणी में रखा गया है. इस तरह का केस प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत में सुना जाता है और जिरह होती है.

कैसे मिलती है जमानत
अपराध के आधार पर जज कारावास के साथ आर्थिक दंड निर्धारत करता है. अगर अपराधी को जेल से बाहर निकालना है तो उसे बांड के रूप में एक निश्चित राशि जमा करनी होती है. इसे जमानती धनराशि कहते हैं. इस बांड को कोर्ट में जमा किया जाता है. फिर जज जिरह करने के बाद जमानत के बारे में फैसला लेता है. अगर अपराधी को धारा 420 के तहत कैद में लिया जाता है तो वह सेशंस कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. जज मामले के आधार पर जमानत दे सकता है.




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