छत्तीसगढ़ की संस्कृति में लोक नृत्य और लोकसंगीत की गहरी छाप है: डॉ अनुसुइया
विगत दिनों 5 दिसंबर 2025 को राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन के द्वारा छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के विविध आयाम विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष प्रो (डॉ) अनुसुइया अग्रवाल डी लिट् प्राचार्य, स्वामी आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालय महासमुंद छत्तीसगढ़ ने कहा कि सामान्यतः संस्कृति को सभ्यता का दूसरा रूप माना जाता है। सभ्यता व्याकरण की दृष्टि से सभ्य होने की अवस्था, गुण और भाव सूचक है।सभ्य शब्द ऐसे लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो सज्जन हो, समझदार हो। जिनमें उज्जडपनऔर बर्बरता नहीं है।
आजकल मानव समाज के लौकिक व्यावहारिक और सामाजिक क्षेत्र में की गई विशेष उन्नति को सभ्यता का विकास कहा जाता है जबकि संस्कृति शब्द का मुख्य संबंध संस्कारों से हैं अर्थात किसी प्रकृत वस्तु को त्रुटि रहित, दोष रहित और विकार रहित करके सुंदर बनाना संस्कार है। यद्यपि दोनों ही शब्द समाज की उन्नति और विकास की सूचक अवस्थाएं हैं तथापि सभ्यता का मुख्य संबंध मनुष्य की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों से है जबकि संस्कृति समाज की आध्यात्मिक, नैतिक, बौद्धिक तथा मानसिक उपलब्धियों का सूचक है। संस्कृति में किसी क्षेत्र या जाति की सभी प्रकार की मान्यताएं, रीति नीति और विश्वास आ जाते हैं। सभ्यता बाह्य और भौतिक सिध्दियों का मापक है जबकि संस्कृति आंतरिक तथा मानसिक उन्नति का परिचायक है।
संस्कृति की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का लोक बहुत ही समृद्ध है। 'धान का कटोरा' नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहाँ की लोक संस्कृति जनजातीय समुदायों, पारंपरिक कलाओं, लोक संगीत, नृत्य और त्योहारों का एक अनूठा संगम है इसलिए भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर छत्तीसगढ़ का एक विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में लोक नृत्य और संगीत की गहरी छाप है। यहां पंडवानी, पंथी, सुवा, कर्मा, राउत नाचा जैसे लोकप्रिय लोक नृत्य गीत है।
छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला और शिल्प पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां का 'ढोकरा कला' यानि धातु (कांसा) से बनी मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ, 'टेराकोटा' यानि मिट्टी के बर्तन और कलाकृतियाँ, गोंडी पेंटिंग यानि जनजातीय कला का एक प्रमुख रूप, जो प्रकृति और जीवन को दर्शाती है; बस्तर का शिल्प- बेल मेटल (मृण्मय धातु) और लकड़ी की कलाकृतियाँ इस क्षेत्र की विशिष्ट पहचान हैं।
यहां के त्यौहार और परंपराओं में 'बस्तर दशहरा' जो लगभग 75 दिनों तक मनाया जाता है ; 'हरेली त्यौहार' जो छत्तीसगढ़ की पहली फसल का त्यौहार है और खेती किसानी से जुड़ा हुआ है। छेरछेरा जो धान कटाई के बाद मनाया जाता है। तीजा' महिलाओं का प्रमुख त्यौहार है जो पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर मनाया जाता है। यह सब छत्तीसगढ़ को विशेष रूप से लोकप्रिय और चर्चित बनाते हैं। छत्तीसगढ़ की महिलाओं और पुरुषों की वेशभूषा बहुत आकर्षक है। महिलाएं लुगरा पहनती है। यह 'कछोरा शैली' में नौ गज की साड़ी हैं जो लंबी और आरामदायक होती है। आभूषणों में मुख्य रूप से चांदी के पायल, कड़े और पारंपरिक आभूषण उनकी सुंदरता बढ़ाते हैं। पुरुष धोती और कुर्ता पहनते हैं। छत्तीसगढ़ में बहुत अपनापन, प्रेम और दुलार है। बाहर से आने वाले सैलानी छत्तीसगढ़ में ही बसना चाहते हैं। ऐसी सुंदर और मनभावन संस्कृति है छत्तीसगढ़ की।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने सम्बोधन में कहा कि - छत्तीसगढ़ को धान के कटोरा के रूप में जाना जाता है और वहां पहले भेंट पर लोग जय जोहार करते हैं। वहां भांजे को भगवान समझ जाता है और बहन का भाई बहुत ध्यान रखता है। उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति आदिवासी परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं और ऐतिहासिक प्रभावों का मिश्रण है। राज्य की लगभग 30% आबादी आदिवासी समुदायों से संबंधित है, जिनमें गोंड, हल्बा, मुरिया, भतरा, उरांव, कंवर, बिंझवार और बैगा प्रमुख हैं। ये समुदाय अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और जीवनशैली के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध करते हैं। यहाँ के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में गर्व महसूस करते हैं, जो उनके त्योहारों, मेलों और दैनिक जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
विशिष्ट वक्ता एवं राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ. प्रभु चौधरी ने बताया कि वे छत्तीसगढ़ कई बार आ चुके हैं। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की ओर से छत्तीसगढ़ में चार पांच राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी हो चुकी है। यहां लोगों से उन्हें जो आत्मीयता मिली वह अद्भुत है।
संगोष्ठी के शुभारम्भ में सरस्वती वंदना संचालक श्वेता मिश्रा ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी की प्रस्तावना राष्ट्रीय महासचिव डॉ. शहनाज शेख ने वक्तव्य में कहा कि छत्तीसगढ़ के लोगों की पूरे भारत में पहचान है और कहा जाता है कि छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया है। विशिष्ट अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी अध्यक्ष हिन्दी परिवार इन्दौर ने छत्तीसगढ़ की रीति नीति परंपराओं और लोक व्यवहारों की सराहना की। राष्ट्रीय संयोजक श्री पदमचंद गांधी जयपुर, ने अध्यक्षीय भाषण दिया। संगोष्ठी में संगोष्ठी में राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद, अंशु जैन देहरादून, श्रीमती सुवर्णा जाधव, डॉ. सुषमा कोंडे पुणे, डॉ. जया सिंह रायपुर, डॉ. आनन्दी सिंह लखनऊ, डॉ. हरिसिंह पाल नई दिल्ली, माया मेहता मुम्बई, कामिनी श्रीवास्तव लखनऊ आदि ने भी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पर अपना सार्थक उद्बोधन दिया। संगोष्ठी का सफल संचालन श्रीमती श्वेता मिश्रा ने किया एवं आभार सुश्री रंजना पांचाल मध्यप्रदेश महासचिव ने माना।